Manisha Dhanwani
1 Nov 2025
लंदन। विश्व की प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने हालिया बैठकों में यह स्पष्ट कर दिया है कि अब वे ब्याज दरों में कटौती को लेकर सावधानी बरत रही हैं। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने बुधवार को अपनी नीतिगत दर में 0.25% की मामूली कटौती की, लेकिन साथ ही यह भी संकेत दिया कि आगे लगातार दरों में कटौती की संभावना फिलहाल नहीं है। फेड चेयर जेरोम पॉवेल ने नीतिगत दर में कटौती के समय कहा था, जब धुंध होती है, तो गाड़ी धीरे चलाई जाती है, यानी जब आर्थिक अनिश्चितता बढ़ी हो, तब नीति निर्माताओं को भी सतर्क रहना चाहिए। अमेरिका में सरकारी शटडाउन की स्थिति ने फेड के आर्थिक आंकड़ों तक पहुंच को प्रभावित किया है, जिससे कोई भविष्यवाणी करना मुश्किल हो गया है। यूरोप और जापान के केंद्रीय बैंकों ने भी इसी तरह सतर्क रुख अपनाया है। यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने अपनी प्रमुख जमा दर को 2% पर तीसरी बार अपरिवर्तित रखा।
बाजारों का मानना है कि यूरो जोन में इस ढील की प्रक्रिया अब लगभग समाप्त हो चुकी है और जुलाई 2026 से पहले और कटौती की संभावना बहुत कम है। बैंक ऑफ जापान ने भी अपनी दरों को यथावत रखा है, जिससे यह स्पष्ट है कि अब वह मौद्रिक नीति में स्थिरता पर ध्यान देना चाहता है। कनाडा के केंद्रीय बैंक ने अमेरिकी व्यापार नीतियों और धीमी घरेलू अर्थव्यवस्था के कारण ब्याज दर को घटाकर 2.25% कर दिया है, जो तीन साल का निचला स्तर है। हालांकि उसने संकेत दिया है कि यह कटौती का अंत हो सकता है और अब कुछ समय तक नीति स्थिर रखी जाएगी। बाजार अनुमान लगा रहे हैं कि दिसंबर 2026 तक बैंक ऑफ कनाडा अपनी नीति में कोई बदलाव नहीं करेगा।
स्विटजरलैंड ने पहले ही जून में अपनी दर 0% पर ला दी है और अब उसके पुनः नकारात्मक दरों की ओर लौटने की संभावना को केंद्रीय बैंक ने पूरी तरह से नकार दिया है। उसका कहना है कि ऐसा करना फ्रैंक मुद्रा को और मजबूत करेगा और देश को डिफ्लेशन की ओर धकेल सकता है। स्वीडन का रिक्सबैंक हाल ही में दरों को घटाकर 1.75% कर चुका है, लेकिन वहां मुद्रास्फीति अभी भी उम्मीद से अधिक बनी हुई है। इसलिए बाजार अब और कटौती की संभावना बहुत कम मानते हैं। दिलचस्प यह है कि स्वीडन की मुद्रा क्राउन इस वर्ष अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 15% तक मजबूत हो चुकी है, जो निवेशकों के भरोसे को दर्शाती है। न्यूज़ीलैंड का रिजर्व बैंक अपनी कमजोर अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए हाल में 0.50% की बड़ी कटौती कर 2.5% की दर पर आया है।
फिर भी, चूँकि वहां मुद्रास्फीति पहले से ही लक्ष्य के ऊपरी स्तर पर है, इसलिए आगे की दर कटौती जटिल निर्णय साबित हो सकती है। कुल मिलाकर, यह रुझान दिखाता है कि वैश्विक केंद्रीय बैंक अब अत्यधिक सतर्क नीति अपना रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में मुद्रास्फीति और आर्थिक सुस्ती के बीच फंसे हुए इन बैंकों ने अब यह महसूस किया है कि लगातार दरों में कटौती करना जोखिमपूर्ण हो सकता है। इसलिए, वे डेटा आधारित निर्णय लेने की ओर लौट रहे हैं जहां हर अगला कदम आर्थिक संकेतकों की स्पष्टता पर निर्भर करेगा। दुनिया की मौद्रिक नीति इस समय सावधानी के दौर में प्रवेश कर चुकी है, जहां स्थिरता को प्राथमिकता दी जा रही है और जल्दबाजी से बचा जा रहा है।