Aniruddh Singh
7 Oct 2025
वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया वित्तीय खुलासों से पता चला है कि उन्होंने पद संभालने के बाद से अब तक 100 मिलियन डॉलर (लगभग 830 करोड़ रुपए) से अधिक के बॉन्ड खरीदे हैं। यह जानकारी यूएस ऑफिस ऑफ गवर्नमेंट एथिक्स को सौंपी गई फाइलिंग्स में सामने आई है। इन दस्तावेजों में बताया गया है कि ट्रंप ने 21 जनवरी से, यानी अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ लेने के अगले दिन से लेकर अब तक 600 से अधिक वित्तीय लेन-देन किए हैं। इन खरीदों में प्रमुख रूप से कॉरपोरेट बॉन्ड शामिल हैं, जैसे सिटीग्रुप, मॉर्गन स्टैनली, वेल्स फार्गो, मेटा, क्वालकॉम, द होम डिपो, टी-मोबाइल यूएसए और यूनाइटेडहेल्थ ग्रुप जैसी बड़ी कंपनियों के बॉन्ड। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न नगर पालिकाओं, राज्यों, काउंटी, स्कूल जिलों, गैस जिलों और अन्य संस्थाओं द्वारा जारी किए गए बॉन्ड भी खरीदे हैं।
इन निवेशों को देखकर यह साफ होता है कि राष्ट्रपति के रूप में उनकी नीतियों का असर उन क्षेत्रों पर पड़ सकता है जिनमें उन्होंने पूंजी लगाई है। अमेरिका में यह मुद्दा संवेदनशील माना जाता है क्योंकि राष्ट्रपति की निजी आर्थिक गतिविधियों और सरकारी नीतियों के बीच टकराव की संभावना बनी रहती है। ट्रंप पहले भी आलोचनाओं का सामना कर चुके हैं क्योंकि उन्होंने अपने कारोबारी साम्राज्य को पूरी तरह अलग करने के बजाय अपने बच्चों के ट्रस्ट में रखा है। जून में दायर वार्षिक वित्तीय खुलासों से यह साफ हुआ था कि उनकी कंपनियों से होने वाली आमदनी अंतत: उन्हीं तक पहुंचती है। यही कारण है कि उनके आलोचक उन पर आरोप लगाते हैं कि सरकारी पद का इस्तेमाल अप्रत्यक्ष रूप से उनके निजी निवेशों को लाभ पहुंचा सकता है।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि ट्रंप ने जिन बॉन्डों में निवेश किया है, वे अमेरिका की आर्थिक नीतियों और बुनियादी ढांचे से गहराई से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, राज्य और स्थानीय स्तर पर जारी बॉन्डों का सीधा संबंध शिक्षा, ऊर्जा, और विकास परियोजनाओं से होता है। यदि सरकार इन क्षेत्रों में नीतिगत बदलाव करती है तो इन बॉन्डों का मूल्य और रिटर्न बढ़ सकता है, जिससे डोनालड ट्रंप को निजी तौर पर फायदा होगा। हालांकि व्हाइट हाउस ने इन खुलासों पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं की है, लेकिन इस तरह के निवेशों ने राष्ट्रपति की वित्तीय पारदर्शिता और नैतिक जिम्मेदारी पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रपति के पास इतनी बड़ी मात्रा में निजी निवेश होने से यह आभास होता है कि नीतिगत फैसलों में निजी हित हावी हो सकते हैं।
दूसरी ओर, समर्थकों का तर्क है कि ट्रंप एक सफल व्यवसायी रहे हैं और उनके वित्तीय निर्णय व्यक्तिगत संपत्ति प्रबंधन का हिस्सा हैं, जिनका सरकारी नीतियों से सीधा संबंध नहीं है। कुल मिलाकर यह खुलासा अमेरिका की राजनीति और प्रशासन में पारदर्शिता की बहस को फिर से तेज कर सकता है। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए निजी निवेश हमेशा विवाद का विषय रहता हैऔर डोना्ल्ड ट्रंप के मामले में यह और भी संवेदनशील है, क्योंकि वे खुद एक व्यापारिक पृष्ठभूमि से आते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में इन वित्तीय गतिविधियों पर किस तरह की राजनीतिक प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं और क्या इससे उनकी नीतिगत विश्वसनीयता प्रभावित होती है।