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तीन साल के लो पर डॉलर, रुपए को मिली 34 पैसे की मजबूती, ट्रंप की ब्याज दरों में कटौती की मांग ने बदली ग्लोबल करेंसी मार्केट की तस्वीर

बिजनेस डेस्क। अंतरबैंकिंग मुद्रा बाजार में आज भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 34 पैसे की तेज बढ़त के साथ 85.75 रुपए प्रति डॉलर पर बंद हुआ। डॉलर की यह कमजोरी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा फेडरल रिजर्व में संभावित लीडरशिप परिवर्तन की अटकलों के बाद आई है। पिछले कारोबारी दिन रुपया 86.09 रुपए प्रति डॉलर पर बंद हुआ था, जबकि आज इसमें मजबूती देखी गई।

85.63 के उच्चतम स्तर पर पहुंचा रुपया

आज सुबह ट्रेडिंग की शुरुआत में रुपया 18 पैसे मजबूत होकर 85.91 रुपए प्रति डॉलर पर ओपन हुआ। दिनभर के कारोबार में रुपया 85.63 रुपए के उच्चतम स्तर तक पहुंचा और लिवाली यानी Buying दबाव में 85.94 रुपए के निचले स्तर तक भी गया। आखिर में यह 34 पैसे की छलांग लगाकर 85.75 पर क्लोज हुआ।

तीन साल के लो पर पहुंचा डॉलर

ग्लोबली देखा जाए तो गुरुवार को डॉलर तीन साल के निचले स्तर पर आ गया है। इसका मुख्य कारण अमेरिकी फेडरल रिजर्व में संभावित बदलाव को लेकर चल रही अटकलें हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल की जगह किसी और को लाने की मंशा जाहिर की है। ट्रंप की प्राथमिकता ब्याज दरों में तेज कटौती करना है और पॉवेल की नीतियों से वे संतुष्ट नहीं हैं।

ट्रंप के रुख से बढ़ी बिकवाली

ट्रंप के इस रुख के बाद ग्लोबल इन्वेस्टर्स ने अमेरिका में ब्याज दरों में संभावित कटौती पर दांव लगाने शुरू कर दिए हैं। इस माहौल में डॉलर पर बिकवाली बढ़ गई, जिससे इसकी वैल्यू प्रमुख करेंसीज जैसे यूरो, येन, पाउंड आदि के मुकाबले गिर गई। रुपया भी इस ग्लोबल मूवमेंट से फायदा पाने वाली करेंसीज में से एक रहा।

ग्लोबल इक्विटी मार्केट्स का भी रहा पॉजिटिव असर

डॉलर की कमजोरी का एक और असर यह रहा कि वैश्विक शेयर बाजारों यानी Global Equity Markets ने बीते तीन दिनों में दूसरी बार नया ऑल-टाइम हाई छू लिया। इसका असर भारत जैसे उभरते बाजारों पर भी देखने को मिला, जहां निवेशकों का भरोसा और मजबूत हुआ।

एक्सपर्ट्स ने कहा- जारी रह सकता है यह ट्रेंड

मनी मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर अमेरिकी फेड में लीडरशिप चेंज होता है और ट्रंप ब्याज दरों में कटौती का दबाव बनाते हैं, तो आने वाले हफ्तों में डॉलर और कमजोर हो सकता है। इससे रुपए को और मजबूती मिलने की संभावना जताई जा रही है। हालांकि, कुछ विश्लेषकों ने चेताया है कि यदि यह केवल एक राजनीतिक चाल है और वास्तविक पॉलिसी चेंज नहीं होता, तो डॉलर में रिकवरी भी तेज हो सकती है।

 

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