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Shivani Gupta
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Aniruddh Singh
20 Sep 2025
लंदन। दुनिया की राजनीति में बड़ा बदलाव लाने वाले कदम के तहत ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने रविवार को फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने की ऐतिहासिक घोषणा की। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने कहा कि यह फैसला इजराइल और फिलिस्तीन के बीच शांति स्थापित करने और लंबे समय से प्रस्तावित टू स्टेट सॉल्यूशन (द्वि-राष्ट्र समाधान) को साकार करने की दिशा में अहम कदम है। इस निर्णय से इजराइल और उसका सहयोगी अमेरिका नाराज हो गए हैं।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा, “आज फिलिस्तीनियों और इजराइलियों के लिए शांति की आशा और द्वि-राष्ट्र समाधान को पुनर्जीवित करने के लिए ब्रिटेन औपचारिक रूप से फिलिस्तीन को देश की मान्यता देता है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि यह कदम किसी भी तरह से इजराइल को सजा देने के लिए नहीं है, बल्कि शांति प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए उठाया गया है।
स्टार्मर ने यह भी कहा कि भविष्य में फिलिस्तीन के शासन में हमास की कोई भूमिका नहीं होगी। उन्होंने दोहराया कि यह मान्यता हमास की जीत नहीं है और फिलिस्तीन की नई सरकार इजराइल के साथ मिलकर काम करेगी।
ब्रिटिश सरकार ने कहा कि यह फैसला उस स्थिति में लिया गया है, जब इजराइल ने लगभग दो साल पुराने गाजा युद्ध में युद्धविराम सहित कई अंतरराष्ट्रीय शर्तों को पूरा करने में विफलता दिखाई।
ब्रिटेन ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू गाजा में सैन्य कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करते हुए कम हिंसक तरीके से अंजाम देते, तो यह फैसला शायद टल सकता था।
ब्रिटेन के इस बड़े कदम के साथ ही कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने भी फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश की मान्यता दे दी। कनाडा ने कहा कि यह फैसला अमेरिका के विरोध के बावजूद लिया गया है। कनाडाई सरकार का मानना है कि यह कदम दो राष्ट्रों के समाधान के आधार पर शांति स्थापित करने का रास्ता खोलेगा, ताकि इजराइल और फिलिस्तीन साथ-साथ शांतिपूर्वक रह सकें।
ब्रिटेन का यह निर्णय उसे उन 140 से अधिक देशों की सूची में शामिल करता है, जो पहले ही फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। इनमें भारत और चीन जैसे बड़े देश भी शामिल हैं। हालांकि, अमेरिका और इजराइल अब भी फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं देते। यह फैसला संयुक्त राष्ट्र महासभा की आगामी बैठक से पहले लिया गया है और प्रतीकात्मक रूप से अहम है क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इजराइल के निर्माण में ब्रिटेन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
ब्रिटेन के इस कदम ने इजराइल और उसके सबसे बड़े सहयोगी अमेरिका को नाराज कर दिया है। अमेरिकी नेताओं ने पहले ही ब्रिटेन पर ऐसा कदम न उठाने का दबाव बनाया था। उनका कहना था कि इससे इजराइल की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है और गाजा में हमास के कब्जे में बंधक बनाए गए लोगों की स्थिति और कठिन हो जाएगी।
पिछले हफ्ते ब्रिटेन की यात्रा पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने साफ कहा था कि फिलिस्तीन को मान्यता देने को लेकर उनकी राय ब्रिटेन से मेल नहीं खाती। इजराइल ने इस कदम को आतंकवाद को इनाम देने जैसा बताते हुए कड़ी आलोचना की है।
इजराइल और हमास के बीच जारी संघर्ष ने अब तक 60 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। गाजा में रहने वाले 20 लाख से अधिक लोगों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। ब्रिटेन और उसके सहयोगी देशों का मानना है कि फिलिस्तीन को मान्यता देने से इस मानवीय संकट को कम करने और शांति वार्ता को आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
ब्रिटिश डिप्टी पीएम डेविड लैमी ने कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता देने का मतलब यह नहीं है कि कोई नया देश तुरंत बन जाएगा। यह सिर्फ एक शांति प्रक्रिया का हिस्सा है, जिससे इजराइल और फिलिस्तीन दोनों को अलग-अलग स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर स्थापित करने की दिशा में काम किया जा सके। ब्रिटेन का मानना है कि यह कदम टू स्टेट सॉल्यूशन को जिंदा रखने और मध्य पूर्व में स्थायी शांति के लिए जरूरी है।