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पर्याप्त बजट होने के बावजूद प्रदेश के 12,613 सरकारी स्कूलों में बालिका शौचालय बंद पड़े या प्रयोग लायक नहीं

रामचन्द्र पाण्डेय  

भोपाल। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं बेसिक सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। 12,613 स्कूल ऐसे हैं, जहां बालिका शौचालय तो हैं, लेकिन ये  इतने गंदे हैं कि उनमें कोई जाता नहीं या फिर इनमें पानी की सुविधा ही नहीं है। स्कूल शिक्षा विभाग के एक मई 2025 की स्थिति के आंकड़े बताते हैं कि  इनमें से 9,837 बालिकाओं के शौचालय बंद पड़े हैं। इसी तरह से  11,396 स्कूलों में बालकों के शौचालय बंद हैं और 3,100 स्कूलों में कोई सुविधा नहीं है।
  अभी हाल ही में आई यूडीआईएसई प्लस यानि यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस 2024-25 सर्वे की रिपोर्ट ने भी इस बात को पुख्ता किया है। हास्यास्पद तो यह है कि सरकार इन स्कूलों में शौचालय के लिए राशि देती है, पर अधिकारी उसे खर्च नहीं कर पाए। भोपाल जिले को शौचालय के लिए मिली 78 प्रतिशत राशि खर्च नहीं हो सकी है। बैरसिया (भोपाल) के बरखेड़ी खुर्द प्रायमरी स्कूल में 70 बच्चे हैं, लेकिन टॉयलेट नहीं। स्कूल में आज तक टॉयलेट नहीं बना है। पढ़िए ऐसे ही कुछ स्कूलों की ग्राउंड रिपोर्ट जिनमें या तो शौचालय नहीं है, या फिर उपयोग लायक नहीं हैं।  

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शा. हा.से. स्कूल नायसमंद, भोपाल

नायसमंद स्कूल में 9वीं से 12वीं तक के 254 छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। स्कूल में बालक और बालिकाओं के लिए अलग-अलग टॉयलेट भी बने हैं, लेकिन उपयोग लायक नहीं हैं। टॉयलेट में पानी सप्लाई के लिए रखी टंकी असामाजिक तत्वों ने चोरी कर ली है। इसकी लिखित सूचना भी प्राचार्य राकेश शुक्ला ने थाने में दी है। 

शा. माध्यमिक शाला, बंदरुआ, भोपाल

बैरसिया ब्लाक के बंदरुआ स्कूल में पहली से 8वीं तक करीब 70 से अधिक छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। यहां छात्र-छात्राओं के टॉयलेट भी अलग-अलग बने हैं, लेकिन एक भी उपयोग लायक नहीं हैं। बच्चों को टॉयलेट के लिए बाहर जाना पड़ता है। प्रभारी प्रधान अध्यापक  कमलेश शर्मा ने राज्य शिक्षा केन्द्र को पत्र लिखा है, लेकिन मरम्मत नहीं हो सकी है। 

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शा माध्यमिक शाला, कढ़ैयाकोटा, भोपाल

कढ़ैयाकोटा का स्कूल भी बैरसिया ब्लाक के अंतर्गत आता है। यहां पहली से 5वीं तक के करीब 55 बच्चे पढ़ते हैं। इस स्कूल के भवन की हालत इतनी जर्जर है कि दो कक्षाओं के बच्चों को एक साथ बैठाना पड़ रहा है। यहां टॉयलेट हैं, लेकिन पानी-साफ सफाई का अभाव है। प्रभारी प्रधान अध्यापक हरेंद्र सोलंकी ने बताया कि इसकी जानकारी वरिष्ठों को भेज दी है। 

पैसा है पर खर्च का प्लान नहीं

प्रदेश के स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए समग्र शिक्षा अभियान के तहत टॉयलेट के लिए 9146.84 करोड़ रुपए का बजट जारी किया गया था।  भोपाल जिले के सरकारी स्कूलों की दुर्दशा दूर करने के लिए राज्य शिक्षा केंद्र से 58 करोड़ रुपए जारी हुए थे। इसमें से करीब 22 फीसदी राशि ही अधिकारी खर्च कर पाए हैं। बाकी के लिए कोई तैयारी तक नहीं है। भोपाल जिले के बालक व बालिका टॉयलेट की मरम्मत के लिए 57.99 करोड़ का बजट है , सिर्फ 13.23 करोड़ हुए है। 

यहां 50% से कम खर्च हुए

भोपाल, जबलुपर, गुना, डिंडोरी, मंदसौर, झाबुआ, टीकमगढ़, देवास, सागर, दतिया, उमरिया, बुरहानपुर, राजगढ़, ग्वालियर, दमोह, बड़वानी, निवाड़ी, खरगोन, रायसेन, छतरपुर, विदिशा, छिंदवाड़ा, हरदा व अलीराजपुर जिलों में जारी की गई राशि 50 फीसदी भी खर्च नहीं हो पाई है।
सरकारी स्कूलों में बच्चों का मोहभंग: प्रदेश में वर्ष 2016-17 से लेकर 2023-24 तक सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा से 12वीं तक के 12,23,384 विद्यार्थी घटे हैं।
 7 सालों में सरकारी स्कूलों में कक्षा पहली से पांचवीं में छह लाख 6,35,434, कक्षा 6 से 8 में 4,83,171 और कक्षा 9 से 12 में एक 1,04,479 बच्चे कम हुए हैं। पिछले सत्र में नामांकन कम होने की संख्या ज्यादा थी। 

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टॉयलेट की व्यवस्था की जा रही

सभी स्कूलों में टॉयलेट की व्यवस्था की जा रही है। स्कूलों से प्रपोजल मंगाए हैं, जिनके प्रपोजल मिले हैं, उन्हें राशि रिलीज कर दी गई है।       

 एनके अहिरवार,  जिला शिक्षा अधिकारी, भोपाल

यह गंभीर समस्या का कारण

खुले या गंदे स्थान में यूरिनेशन से गंभीर परेशानी हो सकती है। यह महिलाओं में ज्यादा आम है। यूटीआई, जिसे यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन भी कहा जाता है, किडनी, यूट्रस, ब्लैडर , यूरेथ्रा समेत यूरिनरी सिस्टम के किसी भी पार्ट में होने वाला इन्फेक्शन है।
  डॉ. नीलिमा अग्रवाल, स्त्री रोग विशेषज्ञ  

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Aniruddh Singh
By Aniruddh Singh
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