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Guru Tegh Bahadur : श्री गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहीदी दिवस सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि मानवता, धार्मिक स्वतंत्रता और अद्वितीय बलिदान की याद दिलाने वाला पवित्र अवसर है। नौवें सिख गुरु ने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध जिस हिम्मत से खड़े होकर अपने प्राण न्यौछावर किए। वह पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1621 में अमृतसर में हुआ। बचपन से ही वे गंभीर, साहसी और ध्यानशील प्रकृति के थे। गुरु हरगोबिंद साहिब जी के पुत्र होने के कारण उन्होंने छोटी आयु से ही शस्त्र-विद्या और आध्यात्मिक ज्ञान दोनों सीखा। 1664 में गुरु हरकृष्ण जी के स्वर्गवास के बाद, सिख पंथ के लोगों ने उनकी तपस्या, ज्ञान और सेवा-भाव को पहचानते हुए उन्हें नौवां गुरु स्वीकार किया।
गुरु तेग बहादुर जी ने देशभर में भ्रमण कर लोगों को साहस, सत्य और आध्यात्मिकता का संदेश दिया। उन्होंने मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया। पंजाब, बिहार और बंगाल में उन्होंने अनेक गुरुद्वारे स्थापित करवाए और गरीबों, पीड़ितों तथा दलितों के उत्थान के लिए लगातार काम किया। उनकी वाणी श्री गुरु ग्रंथ साहिब का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो आज भी मार्गदर्शन देती है।
जब मुगल शासन कश्मीर के हिंदुओं पर जबरन धर्म परिवर्तन का दबाव डाल रहा था। तब हिन्दू पंडितों ने गुरु तेग बहादुर से सहायता मांगी। गुरु जी ने अत्याचार के विरुद्ध खड़े होने का संकल्प लिया और औरंगजेब के सामने धर्म की स्वतंत्रता का पक्ष रखा। उन्हें गिरफ्तार कर अमानवीय यातनाएं दी गईं परंतु वे अडिग रहे।
अंतत 24 नवंबर 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक में उनका बलिदान हुआ। उनकी शहादत धर्म की रक्षा हेतु प्राण न्यौछावर करने का सर्वोच्च उदाहरण मानी जाती है। यही कारण है कि आज भी उनका शहीदी दिवस पूरे विश्व में श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जाता है।