Peoples Reporter
26 Oct 2025
धर्म डेस्क। पूरी दुनिया में लोग उगते हुए सूरज को नमस्कार करते हैं, लेकिन छठ पर्व में डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की एक खास परंपरा निभाई जाती है। चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर समापन किया जाता है। व्रत का तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसी दिन अस्त होते सूर्य की पूजा करते हैं।
छठ के तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देना केवल धार्मिक मान्यता ही नहीं, बल्कि ये जीवन दर्शन का प्रतीक है। डूबता सूरज यह बताता है कि हर कठिन समय का अंत होता है और हर अंधकार के बाद नया सवेरा जरूर आता है। इस समय जल अर्पण करते हुए व्रती अपने भीतर की नकारात्मकता को समाप्त करने और नए जीवन की शुरुआत का संकल्प लेते हैं।
छठ पूजा के तीसरे दिन सूर्यास्त के समय सूर्यदेव की पत्नी देवी प्रत्यूषा की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रत्यूषा का संबंध सांध्यकाल यानी दिन और रात के मिलन से है। पौराणिक कथाओं में उन्हें सूर्य की दूसरी पत्नी माना गया है।
कहा जाता है कि जब सूर्य अपनी पत्नी संज्ञा से अलग हुए, तो उनका स्वरूप प्रत्यूषा और छाया के रूप में प्रकट हुआ। इसलिए छठ पर्व पर सांध्यकाल में की गई पूजा को सुख, समृद्धि और शांति देने वाली मानी जाती है।
हिंदू धर्म में सूर्यदेव को जीवन, ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य नवग्रहों में एकमात्र प्रत्यक्ष देवता हैं जिन्हें हम अपनी आंखों से देख सकते हैं। सूर्य की उपासना से शरीर में ऊर्जा, मन में स्थिरता और जीवन में सफलता आती है। ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से सूर्य की आराधना करता है, उसे अच्छा स्वास्थ्य, समृद्धि और सकारात्मकता प्राप्त होती है।