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नई दिल्ली। देश का प्रसिद्ध गीत ‘वंदे मातरम्’ आज हर देशभक्त के होंठों पर है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस गीत की असल भाषा क्या थी? क्या यह गुरुदेव Bankim Chandra Chattopadhyay ने बंगाली में लिखा था या फिर इसके शब्दों की जड़ें संस्कृत में हैं? एक साधारण सवाल से शुरू हुई बहस इतिहास, भाषा और पहचान के बीच एक दिलचस्प खोज में बदल गई। इसके पीछे की सच्चाई जानकर आप भी चौंक जाएंगे।
2017 में Madras High Court में यह मामला तब उठा जब एक B.Ed उम्मीदवार ने पूछे गए सवाल का उत्तर ‘बंगाली’ दिया था। परीक्षा में पूछा गया था कि, वंदे मातरम मूल रूप से किस भाषा में लिखा गया? उम्मीदवार ने उत्तर दिया ‘बंगाली’, लेकिन परीक्षा बोर्ड ने इसे गलत करार दिया। जिसके बाद मामला अदालत तक पहुंचा और वहां तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल (AG) ने बताया कि, Vande Matram गीत का मूल संस्कृत है, लेकिन इसे बंगाली लिपि में लिखा गया था। इसका मतलब है कि, भाषाई स्रोत संस्कृत हो सकता है पर लेखन माध्यम बंगाली लिपि में था। यह मिश्रित स्थिति भाषा‑प्रेमियों के लिए चौंकाने वाली रही।
गीत के लेखक Bankim Chandra Chattopadhyay ने इस Vande Matram गीत को 1870 के दशक में लिखा, बाद में इसे उनके बंगाली उपन्यास Anandamath (1882) में शामिल किया गया। Vande Matram गीत ‘संस्कृतयुक्त बंगाली’ भाषा में लिखा गया माना जाता है। जिसमें संस्कृत के कई शब्द और व्याकरणीय रूप हैं। शुरुआती श्लोक शुद्ध संस्कृत में हैं, जबकि बाद के हिस्सों में बंगाली शब्दों और शैली का मिश्रण है।
आसान भाषा में कहा जाए तो:
मूल भाषा: संस्कृत
लिपि: बंगाली
जब एक राष्ट्रीय गीत की भाषा‑मूल पर सवाल खड़ा हो जाता है, तो यह सिर्फ भाषाई विवाद नहीं रह जाता। यह हमारे सांस्कृतिक पहचान और ऐतिहासिक साक्ष्यों से जुड़ जाता है। भाषा‑मूल की यह खोज हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि ‘भाषा’, ‘लिपि’ और ‘लेखन माध्यम’ में अंतर क्या है और कैसे एक गीत ने अपनी पहचान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पाई।