Shivani Gupta
8 Oct 2025
Aakash Waghmare
8 Oct 2025
Peoples Reporter
8 Oct 2025
नई दिल्ली/पटना। बिहार में चल रही वोटर लिस्ट की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक बार फिर सुनवाई हुई। कोर्ट ने स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम बिना उचित आधार के हटाए जा रहे हैं, तो न्यायालय इसमें हस्तक्षेप करेगा। साथ ही कोर्ट ने इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई के लिए 12 और 13 अगस्त की तारीख तय की है।
राजद सांसद मनोज झा, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि निर्वाचन आयोग ने बिना पर्याप्त जांच के 65 लाख मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से काट दिए हैं। आयोग का कहना है कि ये लोग या तो मर चुके हैं या स्थाई रूप से किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित हो चुके हैं। जबकि हकीकत यह है कि कई जीवित लोगों को भी मृत घोषित करके सूची से बाहर कर दिया गया है।
सिब्बल ने कोर्ट से आग्रह किया कि चुनाव आयोग इन 65 लाख लोगों के नाम मसौदा सूची में शामिल करें, ताकि कोई मतदाता अपने अधिकार से वंचित न हो। वहीं प्रशांत भूषण ने यह भी कहा कि जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, उन्हें दोबारा मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए फिर से आवेदन करना होगा, जो लंबी और जटिल प्रक्रिया है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि यदि सच में ऐसे मामले हैं, तो ऐसे 15 लोगों को प्रस्तुत करें जो जीवित हैं और फिर भी उन्हें मरा दिखाकर नाम काट दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि यदि बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पाई जाती है, तो वे तुरंत हस्तक्षेप करेंगे।
जस्टिस बागची ने यह भी कहा कि अदालत इस पूरी प्रक्रिया पर नजर रख रही है और एक न्यायिक प्राधिकरण के तौर पर इसकी निगरानी कर रही है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि मसौदा सूची में नामों का उल्लेख नहीं किया जाता है और गलत तरीके से कटौती की जाती है, तो कोर्ट उस पर सख्त रुख अपनाएगा।
निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि SIR एक नियमित और संवैधानिक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य वोटर लिस्ट को साफ और सटीक बनाना है। उन्होंने बताया कि हटाए गए नामों में 22 लाख मृत व्यक्ति, 36 लाख स्थानांतरित मतदाता और 7 लाख अन्य क्षेत्रों में स्थायी रूप से बस चुके लोग शामिल हैं।
द्विवेदी ने कहा कि आधार और वोटर आईडी के अलावा कुछ सहायक दस्तावेज भी जरूरी हैं, क्योंकि अकेले आधार या राशन कार्ड पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने दावा किया कि राशन कार्ड फर्जीवाड़े की दृष्टि से सबसे अधिक जोखिम वाला दस्तावेज है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर बात फर्जीवाड़े की है तो दुनिया में कोई भी ऐसा दस्तावेज नहीं है जिसकी नकल न की जा सके। इसलिए सामूहिक रूप से नाम हटाने के बजाय, आयोग को व्यक्ति-विशेष की जांच करनी चाहिए। अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि सामूहिक नाम हटाने की बजाय सामूहिक नाम जोड़ने की दिशा में प्रयास होना चाहिए।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से एक अगस्त को प्रकाशित होने वाली मसौदा सूची पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया और कहा कि अदालत इस मामले में स्थायी समाधान निकालेगी। अदालत ने यह भी दोहराया कि यदि एसआईआर प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो पूरी प्रक्रिया को रद्द किया जा सकता है।
कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह भी पूछा कि वह आधार कार्ड और वोटर आईडी को पर्याप्त क्यों नहीं मानता, जबकि इन्हें आमतौर पर सबसे विश्वसनीय दस्तावेज माना जाता है। अदालत ने सुझाव दिया कि 11 दस्तावेजों की जो सूची आयोग ने जारी की है, वह समावेशी होनी चाहिए न कि अंतिम।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं और निर्वाचन आयोग से इस मामले में अपना लिखित पक्ष दाखिल करने को कहा है। साथ ही दोनों पक्षों को नोडल अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया गया है ताकि दस्तावेजों का आदान-प्रदान सुव्यवस्थित ढंग से हो सके।