देश में वोटर लिस्ट अपडेट हो रही है—और इसी मौके का फायदा उठाकर साइबर ठग एक नया और खतरनाक तरीका अपना रहे हैं। फोन, व्हाट्सऐप और SMS पर “SIR फॉर्म” के नाम से ऐसी ठगी चल रही है, जो इतनी असली लगती है कि लोग इसे सरकारी प्रक्रिया समझ बैठते हैं… और अपनी जानकारी खुद ही ठगों को दे देते हैं।
क्या है SIR फॉर्म स्कैम?
मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में इस नए प्रकार की धोखाधड़ी को लेकर एडवाइजरी जारी की है। SIR यानी Special Intensive Revision, चुनाव आयोग की वह असली प्रक्रिया है जिसमें वोटरों की जानकारी चेक की जाती है। लेकिन ठग इसी नाम का इस्तेमाल करके लोगों का भरोसा जीत लेते हैं और स्कैम शुरू हो जाता है।
ठग कैसे करते हैं हमला?
- ठग खुद को चुनाव अधिकारी या BLO बताकर कॉल करते हैं।
- कहते हैं- आपका SIR वेरिफिकेशन पूरा नहीं हुआ, आपका नाम वोटर लिस्ट से हट सकता है।
- फिर आपकी मोबाइल पर आया OTP मांगते हैं।
- कुछ मामलों में फर्जी लिंक भेजकर “SIR फॉर्म डाउनलोड” करने को कहते हैं।
- लिंक क्लिक करते ही फोन में मैलवेयर आ जाता है और बैंकिंग ऐप्स तक उनकी पहुंच बन जाती है।
यानी वोटर लिस्ट अपडेट का बहाना और पूरा बैंक अकाउंट साफ!
OTP क्यों सबसे बड़ा खतरा है?
OTP मिलते ही ठग कर सकते हैं-
- आपका UPI या बैंकिंग ऐप रीसेट
- ईमेल और सोशल मीडिया में घुसपैठ
- फोन का पूरा डेटा कॉपी
आपका नाम वोटर लिस्ट से हटना नहीं था, लेकिन बैंक बैलेंस ज़रूर हट जाता है।
लोग इतनी आसानी से क्यों फंस रहे हैं?
- SIR असली सरकारी टर्म है
- कॉल करने वाला ऑफिसियल टोन में बात करता है
- वोटर लिस्ट से नाम हटने का डर
- लोग तुरंत वेरिफाई नहीं करते
- बुजुर्ग और ग्रामीण यूज़र आसान शिकार
ध्यान रखें- चुनाव आयोग कभी ये चीजें नहीं मांगता
चुनाव आयोग-
- OTP नहीं मांगता
- UPI या बैंक डिटेल्स नहीं पूछता
- व्हाट्सऐप लिंक से फॉर्म नहीं भरवाता
- कोई ऐप या APK डाउनलोड नहीं करवाता
- नाम हटाने की धमकी नहीं देता
अगर कोई ऐसा कर रहा है- वो ठग है, अधिकारी नहीं।
अगर ऐसा कॉल आए तो क्या करें?
- घबराएं नहीं, तुरंत कॉल काट दें
- OTP, PIN, पासवर्ड किसी को न दें
- अनजाने लिंक या ऐप न खोलें
- अपने ज़िले के चुनाव कार्यालय में सीधे संपर्क करें
- धोखाधड़ी होने पर तुरंत बैंक को सूचना दें और सायबर हेल्पलाइन 1930 पर शिकायत करें
यह सिर्फ एक ऑनलाइन स्कैम नहीं
ठग लोगों की नागरिक जिम्मेदारी और वोट देने के अधिकार को निशाना बना रहे हैं। इससे न सिर्फ आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि सिस्टम पर लोगों का भरोसा भी कमजोर पड़ता है।