Manisha Dhanwani
20 Nov 2025
Hemant Nagle
19 Nov 2025
Naresh Bhagoria
19 Nov 2025
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति और राज्यपाल की बिल मंजूरी की डेडलाइन तय करने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 14 संवैधानिक सवाल भेजे थे। ये सवाल राज्यपाल और राष्ट्रपति के अधिकार, विधानसभा में पास बिलों पर कार्रवाई की समय-सीमा और उनके संवैधानिक दायरे से जुड़े थे।
यह मामला उस फैसले के बाद सामने आया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को पारित बिलों पर समयबद्ध निर्णय लेना चाहिए। राष्ट्रपति ने इस मामले में संवैधानिक सीमाओं और संघवाद पर संभावित प्रभाव की चिंता जताई थी।
संविधान पीठ ने कहा कि, न्यायपालिका कानून बनाने की प्रक्रिया में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती, लेकिन बिना वजह की अनिश्चित देरी न्यायिक जांच के दायरे में आ सकती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि, भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राज्यपाल के लिए सख्त समयसीमा तय करना संविधान की लचीलेपन की भावना के खिलाफ होगा। राज्यपाल के पास केवल तीन संवैधानिक विकल्प हैं:
राज्यपाल बिलों को अनिश्चितकाल तक रोककर विधायी प्रक्रिया को बाधित नहीं कर सकते। इस निर्णय से स्पष्ट हुआ कि राज्यपाल सिर्फ "रबर स्टैंप" नहीं हैं, बल्कि उनके पास संवैधानिक विवेकाधिकार है। लेकिन यह विवेक अनिश्चितकालीन देरी के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के रेफरेंस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि, अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल के पास केवल तीन विकल्प हैं। अदालत ने यह भी कहा कि, राष्ट्रपति के लिए बिल सुरक्षित रखना भी संवैधानिक संवाद का हिस्सा है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को टकराव या बाधा पैदा करने के बजाय संवाद और सहयोग की भावना अपनानी चाहिए।
इस फैसले से भारत के संघीय ढांचे, राज्यों के अधिकार और गवर्नर की भूमिका पर व्यापक असर पड़ेगा। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि,
नवंबर 2020 - अप्रैल 2023: तमिलनाडु विधानसभा में 12 बिल पास हुए। राज्यपाल आर.एन. रवि ने इन्हें मंजूरी नहीं दी।
अक्टूबर 2023: तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि राज्यपाल द्वारा बिलों को बिना कारण रोकना असंवैधानिक है।
8 अप्रैल 2025: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के बिल अटकाने को अवैध बताया और कहा कि राष्ट्रपति को भेजे गए बिलों पर तीन महीने में निर्णय लेना होगा।
15 मई 2025: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आर्टिकल 143 (1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे।
आज का फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका समय-सीमा तय नहीं कर सकती, लेकिन अनिश्चितकालीन देरी न्यायिक हस्तक्षेप के दायरे में आ सकती है।