Shivani Gupta
6 Nov 2025
जैन धर्म में पर्युषण सबसे महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह आत्मसंयम, तप और क्षमायाचना का पर्व है, जिसे दिगंबर संप्रदाय 10 दिन और श्वेतांबर संप्रदाय 8 दिन तक मनाते हैं। इस साल यह पर्व गुरुवार, 21 अगस्त से शुरू हो रहा है। इस दौरान साधक उपवास, स्वाध्याय और प्रार्थना के माध्यम से आत्मशुद्धि का प्रयास करते हैं।
पर्युषण का अर्थ है – अपने भीतर ठहरना। इस दौरान जैन समुदाय उपवास, ध्यान, स्वाध्याय और प्रार्थना करता है। इसका उद्देश्य क्रोध, अहंकार, लोभ और मोह जैसी बुरी आदतों को छोड़कर करुणा, क्षमा और आत्मसंयम को अपनाना है।
पर्युषण का सबसे महत्वपूर्ण क्षण है क्षमापना। अंतिम दिन जैन समाज के लोग एक-दूसरे से ‘मिच्छामि दुक्कड़म्’ कहकर क्षमा मांगते हैं। इसका अर्थ है – यदि जाने-अनजाने में किसी को दुख पहुंचा हो तो कृपया क्षमा करें।
यह पर्व केवल धार्मिक साधना नहीं है, बल्कि जीवन में मानवीय मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है। यह सिखाता है कि सच्चा धर्म वही है जो अहिंसा, करुणा और क्षमा का भाव जगाए।