Manisha Dhanwani
12 Sep 2025
काठमांडू। नेपाल में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इस्तीफे को 48 घंटे हो चुके हैं, लेकिन अभी तक स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। हालांकि, पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की का नाम अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में लगभग तय माना जा रहा है। काठमांडू के मेयर बालेन शाह और आंदोलनकारी युवाओं का भी उन्हें समर्थन मिल चुका है।
नेपाल में बीते हफ्ते शुरू हुआ Gen-Z आंदोलन अभी भी असर दिखा रहा है। सोशल मीडिया बैन और बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ यह प्रदर्शन हिंसक हो गया, जिसमें अब तक 34 लोगों की मौत और 1500 से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। हालात बिगड़ने पर सेना ने राजधानी काठमांडू समेत ललितपुर और भक्तपुर में कर्फ्यू लागू कर दिया है।
चर्चाओं और विरोध प्रदर्शनों के बीच सुशीला कार्की के नाम पर सहमति बनने लगी है। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल शुक्रवार सुबह उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त करने की तैयारी कर रहे हैं। माना जा रहा है कि संविधान के अनुच्छेद 61(4) के प्रावधान का इस्तेमाल कर उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
कार्की के नाम को लेकर Gen-Z आंदोलनकारियों में आपसी मतभेद जरूर हुआ। एक गुट ने उन पर भारत समर्थक होने का आरोप लगाया, जबकि दूसरा गुट उनके पक्ष में खड़ा रहा। हालांकि, काठमांडू के मेयर और युवाओं के चहेते नेता बालेन शाह ने साफ कहा कि देश को अब चुनाव कराने वाली अंतरिम सरकार की जरूरत है और इसके लिए कार्की सबसे उपयुक्त चेहरा हैं।
हालांकि कार्की का नाम सबसे मजबूत माना जा रहा है, लेकिन उनके अलावा काठमांडू मेयर बालेन शाह, बिजली सुधारों के लिए चर्चित कुलमान घीसिंग और धरान के मेयर हरका साम्पांग भी पीएम पद के दावेदार बताए जा रहे हैं।
हिंसा और अफरातफरी का फायदा उठाकर देशभर की 24 से ज्यादा जेलों से करीब 15 हजार कैदी फरार हो गए। सुरक्षा बलों और कैदियों के बीच हुई झड़प में कई कैदियों की मौत भी हुई। विपक्षी दल UML ने इस घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की है और सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी पर सवाल उठाए हैं।
सुशीला कार्की ने हाल ही में कहा कि भारत और नेपाल के रिश्ते बहुत गहरे और मानवीय स्तर पर मजबूत हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी प्रशंसा की और कहा कि दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाना समय की मांग है। कार्की खुद नेपाल-भारत सीमा के करीब पली-बढ़ी हैं और भारत को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण रखती हैं।
सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और वॉट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म बंद कर दिए। इससे युवाओं की कमाई और कम्युनिकेशन दोनों पर असर पड़ा।
सिर्फ पांच साल में देश ने तीन प्रधानमंत्री देखे – शेर बहादुर देउबा, पुष्प कमल दहल (प्रचंड) और केपी शर्मा ओली।
बेरोजगारी दर 10% से ऊपर है और 20% अमीरों के पास देश की आधी से ज्यादा संपत्ति है।
कभी अमेरिका तो कभी चीन का दबाव नेपाल की नीतियों पर साफ नजर आता है। आश्चर्यजनक रूप से, बैन के बीच सिर्फ TikTok को चालू रखा गया।
लिपुलेख विवाद और चीन से बढ़ती नजदीकी ने भारत-नेपाल रिश्तों को कमजोर किया। इससे आर्थिक और सामाजिक दबाव और बढ़ा।
नेताओं ने रिश्तेदारों को बड़े पद दिए। उनके बच्चों की विदेश यात्राएं, महंगे ब्रांड्स और शाही पार्टियों ने युवाओं का गुस्सा और भड़काया।