Mithilesh Yadav
31 Oct 2025
Aditi Rawat
31 Oct 2025
Hemant Nagle
31 Oct 2025
राजीव सोनी-भोपाल। मंदसौर की निर्मला देवी (56) को मुक्तिधाम-मरघट की मर्दानी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पिछले 17 साल से मुक्तिधाम में सेवा दे रही निर्मला अब तक 10 हजार से अधिक शवों के अंतिम संस्कार करा चुकी हैं। अंत्येष्टि के लिए लकड़ी जमाने से लेकर परिजनों की मदद और बाद में भी चिता की देखरेख करने जैसे काम को उन्होंने सेवा और आजीविका के बतौर अपना लिया। सामान्य तौर पर महिलाओं के मन में मरघट-मुक्तिधाम को लेकर एक अदृश्यभय अथवा वर्जना दिखती है, क्योंकि पुरातन काल से यह काम पुरुषों के हवाले ही रहा। समय के साथ धीरे-धीरे इसमें भी बदलाव आने लगा है। पहले तो नाते रिश्तेदार और पड़ोसी निर्मला को देख मुंह फेर लेते थे, लेकिन अब उसके काम की इज्जत होने लगी है।
निर्मला की कहानी बड़ी ही दर्दनाक है। उस पर जब दुखों का पहाड़ टूटा और जीवन यापन का साधन नहीं बचा तो उसने मुक्तिधाम की राह पकड़ ली। 19 साल पहले चिकनगुनिया से उसके पति की मौत हो गई। फिर मां और कोविड में 33 साल का बेटा चल बसा। अभी इस दुख से उबरी भी नहीं थी कि एक साल बाद छोटा बेटा भी नहीं रहा। इसके बाद बाढ़ आई तो घर का सारा सामान बह गया। वह कहती हैं कि जैसे-तैसे गुजर-बसर हो रही है। परिवार में दोनों विधवा पुत्रवधु और 5 बच्चे हैं।
श्मशान में महिला को इस तरह चिता के आस-पास काम करते देख लोग भौंचक रह जाते हैं। लकड़ी जमाने-तौलने से शुरू हुई उसकी यात्रा अब दाह संस्कार में मदद और चिता की देखरेख तक जा पहुंची। कोविड काल में तो रात 3 बजे तक मरघट में सेवाएं देती रही। वह बताती है कि अभी औसतन 3-4 डेड-बॉडी आती हैं, कभी एक-दो कम-ज्यादा भी हो जातीं। कोविड में यह संख्या 30-35 तक हो गई थी। मृत बच्चों और पालतू जानवरों को दफनाने में भी वह मदद को तत्पर रहती हैं। वह कहती हैं कि मैं तो सेवा मानकर यह करती हूं, किसी ने कुछ दे दिया तो रख लेती हूं।
मंदसौर के पूर्व विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया बताते हैं कि निर्मला के हौसले को सलाम है। नारी शक्ति वंदन अभियान के तहत पीएम मोदी ने ऐसी महिलाओं को न केवल मान-सम्मान, बल्कि स्वावलंबन को बढ़ावा दिया है। 5 साल पहले तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान, मंदसौर गौरव सम्मान से निर्मला को अलंकृत कर चुके हैं। निर्मला को अब मुक्तिधाम समिति से स्थायी मानदेय दिलाने की अनुशंसा भी की गई है।