Shivani Gupta
28 Nov 2025
Mithilesh Yadav
28 Nov 2025
Manisha Dhanwani
28 Nov 2025
Naresh Bhagoria
28 Nov 2025
लेह, जिसे अब तक शांत और सुरक्षित इलाका माना जाता था, बुधवार को अचानक हिंसा की आग में झुलस गया। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच झड़प में 4 लोगों की मौत हो गई और 80 से ज्यादा घायल हुए। बीजेपी दफ्तर और CRPF की गाड़ी तक को आग के हवाले कर दिया गया। इस हिंसा के लिए केंद्र सरकार ने सीधे तौर पर सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया है। वहीं वांगचुक का कहना है कि, उनकी वर्षों से चली आ रही शांति की अपील को नजरअंदाज किया गया, जिसके चलते हालात बिगड़े।
गृह मंत्रालय ने देर रात बयान जारी कर कहा कि, सोनम वांगचुक ने अपने भड़काऊ बयानों से भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया। मंत्रालय ने आरोप लगाया कि, उन्होंने अरब स्प्रिंग और नेपाल के Gen-Z प्रदर्शनों का उदाहरण देकर युवाओं को गुमराह किया। इसके अलावा मंत्रालय ने कहा कि, जब हालात बिगड़े, तो वांगचुक ने उपवास तोड़ा और एम्बुलेंस से गांव लौट गए, लेकिन भीड़ को शांत करने का प्रयास नहीं किया।
सोशल मीडिया पर लद्दाख बंद का आह्वान- आंदोलनकारियों ने 23 सितंबर की रात को ही 24 सितंबर को बंद बुलाने की घोषणा कर दी थी। बड़ी संख्या में लोग लेह में इकट्ठा हो गए।
पुलिस-प्रदर्शनकारियों की झड़प- लेह हिल काउंसिल के बाहर बैरिकेड लगाए गए थे। भीड़ ने इन्हें तोड़ने की कोशिश की तो पुलिस ने आंसू गैस छोड़ी। इसके जवाब में भीड़ ने वाहनों और बीजेपी ऑफिस में आगजनी की।
लद्दाख में इस तरह की हिंसा 36 साल बाद हुई है। 1989 में केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने की मांग को लेकर हुए विरोध में पुलिस गोलीबारी में 3 लोग मारे गए थे। बुधवार की हिंसा ने उस पुराने जख्म को फिर से ताजा कर दिया।
इन मांगों पर 6 अक्टूबर को केंद्र सरकार और स्थानीय प्रतिनिधियों के बीच बैठक तय है।
वांगचुक ने हिंसा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह उनके लिए सबसे दुखद दिन है। उन्होंने कहा कि 5 साल से शांति की अपील कर रहे थे, लेकिन लगातार अनसुना किया गया। युवाओं की मौत को देखते हुए उन्होंने अपना अनशन तोड़ दिया और प्रदर्शन रोकने की अपील की। उन्होंने कहा- “जब शांति के संदेश को नजरअंदाज किया जाता है, तो ऐसे हालात पैदा होते हैं।”
सूत्रों के अनुसार सरकार इस हिंसा के पीछे विदेशी कनेक्शन की भी जांच कर रही है। वांगचुक इस साल फरवरी में पाकिस्तान में एक कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए थे। अब उनकी इस यात्रा को भी शक की निगाह से देखा जा रहा है।
सरकार का कहना है कि लद्दाख की जनता की आकांक्षाओं और संवैधानिक अधिकारों को पूरा करने के लिए वह प्रतिबद्ध है। वहीं, स्थानीय संगठनों का मानना है कि, बिना संवैधानिक सुरक्षा के उनकी जमीन, नौकरियां और पहचान खतरे में हैं। अब सबकी निगाहें 6 अक्टूबर की बैठक पर हैं, जो तय करेगी कि लद्दाख में शांति लौटेगी या विरोध की आग और भड़केगी।