जिसके पास कला का हुनर है, उसके सामने भले ही कितनी परेशानियां आ जाएं, लेकिन वह व्यक्ति एक न एक दिन जरूर कामयाब होता है। ऐसे ही कुछ मुश्किल हालातों का सामना किया डिंडोरी में जन्मीं चाड़ा गांव की चित्रकार सरस्वती परस्ते की कहानी हैं, जिन्होंने पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते नर्स की नौकरी को छोड़ दिया था। इसके बाद उन्होंने अपनी ननद चित्रकार दुर्गाबाई व्याम से चित्रकला की बारीकियां सीखी। फिर मयंक श्याम और हीरामन उर्वेती के चित्र- कर्म में भी सहयोग किया। चित्रकार सरस्वती कहती हैं कि पिछले कुछ सालों में जनजातीय लोक कलाओं को लेकर लोगों की समझ बनीं और बाजार निर्मित हुआ अब शहर में ही रह कर गोंड चित्रकारी कर रहीं हूं और अपने दोनों बच्चों को चित्रकारी सीखा रहीं हूं, ताकि वह इस परंपरा को आगे बढ़ा सकें ।
चित्रों में पशु-पक्षी, पेड़-पौधे एवं अपने आस- पड़ोस के वातावरण की झलक प्रमुखता से दिखाई देती है। हालांकि यह चित्र लगभग हर चित्रकार की कूची से निकलते हैं, लेकिन इसमें सभी का अपना-अपना प्रभाव व मनोस्थिति व अपने जीवन अनुभवों की झलक परिलक्षित होती है। किसी चित्र में पेड़ के नीचे बैठ कर खेलते बच्चे, किसी में तालाब में मछली पकड़ते मछुआरे , किसी में पेड़ों का महत्व को दर्शाया गया है। इसके अलावा खेत में खेती करता किसान, गाय-बैल और आपस में मस्ती करते पशु-पक्षियों के चित्रों को देखा जा सकता है। यह प्रदर्शनी 30 दिसंबर तक दर्शक देख सकते हैं।
जनजातीय संग्रहालय में शुरू हुई सरस्वती परस्ते की गोंड चित्रों की प्रदर्शनी में उनके बनाए चित्रों को देखा व खरीदा जा सकता है। इस महिला कलाकार के चित्रों को एक बार देखने पर दर्शक देखते रह जाते हैं। रंगों का अद्भुत संयोजन और चटक रंगों के समावेश से की गई चित्रकारी देखते ही बनती है। तमाम अभावों से गुजरी सरस्वती की कला ने समय के साथ परिपक्वता हासिल की और आज वे भारत के अलग-अलग राज्यों में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित की जाती हैं। ओडिशा, केरल एवं अन्य स्थानों में चित्रकला प्रदर्शनियों में भी भागीदारी कर चुकी हैं।
मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय द्वारा प्रदेश के जनजातीय चित्रकारों को चित्र प्रदर्शनी और चित्रों की बिक्री के लिए मंच उपलब्ध कराने के लिए शलाका प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। इस प्रदर्शनी के माध्मय से लोग इन चित्रकारों के चित्रों को खरीद सकते हैं। इससे चित्रकारों की रोजगार मिलता है।