Mithilesh Yadav
17 Sep 2025
शाहिद खान, भोपाल। इंदिरा नगर मल्टी में रहने वाली 55 साल की शीला बाई रात को ठीक से सो नहीं पाती हैं। हर वक्त उनके मन में डर बना रहता है कि कहीं सोते समय छत का प्लास्टर टूटकर उनके या परिवार के किसी सदस्य पर न गिर जाए और कोई अनहोनी न हो जाए। इतना ही नहीं, घर में सीलन की वजह से सेहत से जुड़ी कई दिक्कतें शुरू हो गई हैं। वह कहती हैं, 2015 तक हम लोग 12 नंबर मार्केट के पीछे झुग्गियों में रहते थे। झुग्गी भले ही कच्ची थी, लेकिन जिंदगी में सुकून था।
पहले पता होता कि सरकार जो पक्का घर दे रही है, वह ऐसा है, तो लेते ही नहीं। यह पीड़ा इस मल्टी में रहने वाले 800 परिवारों सहित अन्य मल्टियों में रहने वाले हजारों गरीबों की है। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू अरबन रिनुअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) स्कीम के तहत करीब 202 करोड़ रुपए की लागत से राजधानी की 9 लोकेशंस पर गरीबों के लिए इन मल्टी स्टोरी बिल्डिंग्स का निर्माण नगर निगम द्वारा किया गया था। 2015-16 में इनका निर्माण पूरा कर परिवारों को इनमें शिफ्ट कर दिया गया था। एक फ्लैट की कीमत साइज के अनुसार 4 से साढ़े चार लाख रुपए थी।
इसमें हितग्राहियों को डेढ़ लाख रुपए देने थे, बाकी का पैसा केंद्र, राज्य सरकार और नगर निगम ने लगाया था। कई गरीब परिवारों ने उस समय बैंक से लोन लेकर इन फ्लैट्स को लिया था। अब घटिया निर्माण की वजह से 9 साल में ही ये बिल्डिंग दरकने लगी हैं। इंदिरा नगर मल्टी में रहने वाले रामेश्वर धुरिया कहते हैं, यहां एक नहीं कई समस्याएं हैं। सीवेज लाइनें टूट चुकी हैं। छत, सीढ़ियों और छज्जों का प्लास्टर गिर रहा है। बिल्डिंग जर्जर हो चुकी है, कांक्रीट के अंदर सरिए दिखने लगे हैं। वह कहते हैं नगर निगम अधिकारियों से शिकायत करो, तो कोई सुनवाई नहीं होती।
मैनिट चौराहा स्थित राहुल नगर मल्टी में पांच सौ से अधिक परिवार रहते हैं। यहां रहने वाले राहुल सेन कहते हैं कि निर्माण में घटिया सामग्री का उपयोग किया गया। नतीजा फ्लैट एक-दो साल में ही जर्जर हो गए थे। फ्लैट के अंदर मेंटेनेंस हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन बाहरी मेंटेनेंस निगम को कराना है। निगम अधिकारी कहते हैं, मेंटेनेंस का प्रावधान ही नहीं है। रहवासी समिति को यह काम करना है, लेकिन यहां समिति ही नहीं बन पाई है।
लिंक रोड नंबर दो पर अर्जुन नगर मल्टी में रहने वाले बलबीर बताते हैं कि उनकी मल्टी में ऐसा कोई फ्लैट नहीं है, जहां किचन और टॉयलेट में सीपेज न हो। सीपेज की वजह से दीवारें कमजोर हो चुकी हैं। सीलन फैल गई है। लोग इन फ्लैटों को छोड़कर किराए के मकानों में रहने को मजबूर हैं।
अर्जुन नगर में नगर निगम ने 1120 फ्लैट बनाए हैं। इसके लिए निगम ने सुप्रीम बिल्डकॉन को ठेका दिया था। उसने निर्माण रिजवान नामक ठेकेदार से कराया। निर्माण के दौरान जनवरी, 2014 में यहां एक ब्लॉक की छत गिर गई थी। इसकी जांच तत्कालीन सिटी इंजीनियर सुनील श्रीवास्तव ने की थी। इसमें सीमेंट की मात्रा कम पाई गई। फिर कुछ मरम्मत कार्य के साथ फ्लैट सौंप दिए गए।
सामान्य तौर पर अपार्टमेंट की लाइफ 50-60 साल और जमीन पर बने मकान की उम्र इससे ज्यादा होती है। अगर कोई फ्लैट दस साल भी न टिक पाए तो निर्माण में क्वालिटी कंट्रोल का ध्यान नहीं रखा गया। - इलियास अली, आर्किटेक्ट एवं स्ट्रक्चर इंजीनियर
जएनएनयूआरएम के तहत बनाए गए आवासों का मेंटेनेंस रहवासी समितियों को कराना है। आवंटन के बाद निगम द्वारा मेंटेनेंस कराने का कोई प्रावधान नहीं है। - हरेंद्र नारायण, आयुक्त, ननि