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सतीश श्रीवास्तव
जबलपुर। प्रथम पूज्य मंगल मूर्ति श्रीगणेश एक मात्र ऐसे देवता हैं, जिनके यहां लोग अपने रुके कामों को करवाने के लिए अर्जी लगाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर है गौरीघाट रोड पर स्थित श्रीसिद्ध गणेश मंदिर जिसे अर्जी वाले गणेश जी के नाम से भी जाना जाता है। खास बात यह है कि इस मंदिर में भक्तों द्वारा लिखवाई गई हर अर्जी का बकायदा हिसाब रखा जाता है। हर अर्जी को एक रजिस्ट्रेशन नंबर भी दिया गया है।
यहां के स्वामी राम बहादुर के मुताबिक मंदिर के निर्माण हेतु जब जमीन की खुदाई की गई तो 4 फीट खुदाई करने के बाद ही लगभग ढाई फीट की श्रीगणेश की प्रतिमा मिली। मंदिर निर्माण के दौरान नैरोगेज को ब्रॉडगेज में परिवर्तित करने के लिए मंदिर का अध्रिगहण किया गया था। उसे बदलवाने के लिए पहली अर्जी लगाई गई थी। बाद में रेलवे ने नक्शा बदल दिया था।
उस समय जब प्रशासनिक और रेलवे के अधिकारी मंदिर हटाने का प्रयास कर रहे थे, तब मंदिर निर्माण के समय निकली प्रतिमा के समक्ष पहली अर्जी लगाई गई और बाद में रेलवे ने अपना नक्शा बदला और ब्राडग्रेज लाइन काफी दूर से निकाली गई। उसी समय से श्रद्धालुओं के अर्जी लगाने का सिलसिला शुरू हो गया।
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मंदिर में अर्जी लगाने के तत्काल बाद ही रजिस्टर में नाम और रजिस्ट्रेशन नंबर दिया जाता है। अर्जी पूरी होने के बाद श्रद्धालु अपनी हैसियत के अनुरूप मंदिर में छत्र, श्रृंगार, वस्त्र और भंडारा आदि कराते हैं। अर्जी लगाने वाले का नाम पूरी तरह गुप्त रखा जाता है। अर्जी पूरी होने पर वही नारियल लौटाया जाता है, जिस नाम से अर्जी लगी थी। यही वजह है कि मंदिर में दान-पुण्य और श्रद्धा का सिलसिला साल भर चलता रहता है।
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अब तक भक्तों की अर्जी से 72 रजिस्टर भर चुके हैं जिसमें लगभग 1 लाख 27 हजार 505 भक्तों की अर्जी लिखी हुई हैं। इनमें से अधिकांश भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण भी हुई हैं। जिन भक्तों की अर्जी स्वीकार ली जाती है उन भक्तों की भी अलग से रजिस्टर में एंट्री की जाती है। मयंक सेठ नाम के एक श्रद्धालु ने कहा हर साल देश के कई राज्यों से श्रद्धालु अर्जी लगाने आते हैं। मंदिर में जज, पुलिस अधिकारी से लेकर प्रशासनिक अमला भी यहां पूजन करने आते हैं।