Naresh Bhagoria
11 Nov 2025
प्राची ने पीपुल्स अपडेट की टीम को बताया कि वह अपने परिवार के सपनों को पूरा करने के लिए खातेगाँव से इंदौर आई थी। शुरुआत में उसने राजस्थान के वनस्थली विद्यापीठ में प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया था, परंतु परिवार से अधिक दूरी होने के कारण उसे इंदौर आना पड़ा। सिविल जज की प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद वह लगातार मेंस परीक्षा की तैयारी में जुटी थी, लेकिन जब बीए-एलएलबी का परिणाम आया तो वह हैरान रह गई।
उसके कुल अंक अपेक्षा से कम निकले-
जहां अन्य विद्यार्थियों को 5600 में से अंक दिए गए थे, वहीं प्राची को 5300 में से अंक दर्शाए गए। जाँच करने पर पता चला कि विश्वविद्यालय (डीएवीवी) ने तीन विषयों अपकृत्य कानून, अनुबंध कानून-I और अनुबंध कानून-II — के अंक जोड़ना ही भूल गया था। परिणामस्वरूप, जहाँ उसका योग 5600 अंकों पर होना चाहिए था, वहीं डीएवीवी ने गलती से 5300 अंकों के आधार पर अंतिम मार्कशीट जारी कर दी। प्राची ने बताया कि वह इसके बावजूद प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई, लेकिन इस त्रुटि के कारण उसका प्रतिशत 69.67% आया, जबकि सिविल जज परीक्षा के लिए 70% अंक अनिवार्य हैं। विश्वविद्यालय की इस एक गलती ने उसकी वर्षों की मेहनत और परिवार के सपनों पर पानी फेर दिया।
प्राची वर्तमान में इंदौर में अधिवक्ता के रूप में कार्यरत हैं। डीएवीवी द्वारा उसकी मार्कशीट में दस विषयों के अंक नहीं जोड़े जाने के विरोध में उसने हाई कोर्ट की शरण ली थी। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ने डीएवीवी को आदेश दिया कि वह प्राची की संशोधित मार्कशीट जारी करे और ऐसे विद्यार्थियों के लिए नीति बनाए, जिन्हें अन्य विश्वविद्यालयों से ट्रांसफर लेकर प्रवेश दिया गया है, ताकि भविष्य में उन्हें ऐसी परेशानियों का सामना न करना पड़े।लेकिन डीएवीवी ने अदालत के निर्देशों पर अमल करने के बजाय नया रास्ता अपनाया। मार्कशीट जारी करने और जवाब प्रस्तुत करने के स्थान पर विश्वविद्यालय ने सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख कर लिया। अब यह मामला उच्चतम न्यायालय में पहुँच गया है, जहाँ यह देखा जाएगा कि आखिर गलती सुधारने से बचने के पीछे विश्वविद्यालय की “मंशा” क्या थी — न्याय से बचना या अपनी भूल छिपाना।
प्राची का कहना है कि मेरे भविष्य का जितना नुकसान होना था, वह हो चुका है। लेकिन अब मुझे केवल न्याय की उम्मीद है। डीएवीवी ने 1 नवंबर को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद विश्वविद्यालय का सुप्रीम कोर्ट जाना किस लाभ के लिए है, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय से न्याय अवश्य मिलेगा।