Naresh Bhagoria
29 Dec 2025
नई दिल्ली। दुनिया भर के चांदी बाजारों में इस समय एक अभूतपूर्व संकट देखने को मिल रहा है, जिसकी जड़ें भारत से शुरू हुईं और असर लंदन तक देखने को मिल रहा है। इस साल त्योहारों के मौसम में भारतीय उपभोक्ताओं द्वारा चांदी की भारी खरीदारी ने वैश्विक भंडारों को लगभग खाली कर दिया है। दिवाली और धनतेरस जैसे अवसरों पर देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए लोग सोने की बजाय चांदी खरीदने लगे हैं, जिससे मांग में अप्रत्याशित उछाल देखने को मिली। इसका असर यह हुआ है कि देश के सबसे बड़े कीमती धातु रिफाइनरी संचालक एमएमटीसी-पैम्प इंडिया को पहली बार अपने इतिहास में चांदी का स्टॉक खत्म होने की घोषणा करनी पड़ी है। यह उन्माद केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। जैसे-जैसे भारतीय बाजार में चांदी की कमी बढ़ी, अंतरराष्ट्रीय निवेशकों और हेज फंड्स ने भी इसमें निवेश शुरू कर दिया, जिससे कीमतें और तेजी से बढ़ने लगीं।
कुछ ही दिनों में वैश्विक कीमतों का निर्धारण करने वाला लंदन का चांदी बाजार भी लगभग खाली हो गया। वहां के बड़े बैंक और व्यापारी भी कीमतों के उद्धरण देने से पीछे हट गए क्योंकि मांग का दबाव बहुत अधिक था। पिछले सप्ताह चांदी की कीमत 54 डॉलर प्रति औंस के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई, जो अब तक का सबसे उच्च स्तर है। इसके बाद अचानक इसमें 6.7% की गिरावट आई, जिसने बाजार में और अस्थिरता पैदा कर दी। विशेषज्ञों के अनुसार, यह संकट 45 साल बाद सबसे बड़ा है, जब 1980 में हंट ब्रदर्स ने चांदी बाजार पर कब्जा करने की कोशिश की थी। इस स्थिति के पीछे कई कारक एक साथ काम कर रहे हैं-सौर ऊर्जा उद्योग में तेजी, अमेरिकी डॉलर की कमजोरी की चिंता, वैश्विक निवेशकों की डिबेसमेंट ट्रेड रणनीति और भारतीय उपभोक्ताओं की भारी मांग।
इस साल भारत में चांदी की मांग इसलिए भी बढ़ी क्योंकि सोशल मीडिया पर कई वित्तीय विशेषज्ञों ने सोने और चांदी के मूल्य अनुपात (100:1) के आधार पर यह प्रचार किया कि अब चांदी की कीमतें ज्यादा तेजी से बढ़ेंगी। निवेशक और आम लोग दोनों ने इस पर विश्वास किया और भारी मात्रा में चांदी खरीदी। परिणामस्वरूप भारत में चांदी की कीमतें अंतरराष्ट्रीय दरों से एक डॉलर प्रति औंस तक अधिक हो गईं। इसी बीच चीन जो चांदी की आपूर्ति का एक प्रमुख स्रोत है, अपनी राष्ट्रीय छुट्टियों के कारण एक सप्ताह के लिए बंद था, जिससे आपूर्ति संकट और गहरा गया। ऐसे में व्यापारी लंदन की ओर मुड़े, लेकिन वहां के भंडार पहले से ही एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफ) द्वारा कब्जा किए जा चुके थे।
इस भारी मांग और आपूर्ति के अभाव के कारण जेपी मॉर्गन जैसी बड़ी कंपनियों ने अक्टूबर महीने के लिए भारत को चांदी की डिलीवरी रोक दी। भारत के कई प्रमुख म्यूचुअल फंड्स जैसे कोटक, यूटीआई और एसबीआई ने भी अपने सिल्वर फंड्स में नई सदस्यता लेना अस्थायी रूप से बंद कर दिया क्योंकि उनके पास भौतिक चांदी का स्टॉक नहीं बचा था। कुल मिलाकर, यह संकट दिखाता है कि कैसे भारत की धार्मिक परंपराएं, सोशल मीडिया का प्रभाव, और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता एक साथ मिलकर पूरी दुनिया के चांदी बाजार को हिला सकती हैं। यह सिल्वर शॉक व्यापारियों और निवेशकों के लिए एक चेतावनी है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की नाजुकता की ओर इशारा करती है।