Garima Vishwakarma
28 Dec 2025
सर्दियों में जल्दी से जल्दी बिस्तरों पर जाना और जल्दी से अपनी नींद पूरी करना हर किसी को अलग ही सुकून देती है। लेकिन, इन कड़कड़ाती ठंड में लोगों को खर्राटे की भी शिकायतें बनी रहती है। हालांकि खर्राटे आना एक आम समस्या है, जो मौसम बदलने के साथ और ज्यादा बढ़ सकती है।
यह न सिर्फ नींद की गुणवत्ता को प्रभावित करती है, बल्कि लंबे समय में सेहत पर भी असर डाल सकती है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन (AASM) के अनुसार, दुनियाभर में करीब 24% महिलाएं और 40% पुरुष खर्राटों की समस्या से जूझते हैं।
सर्दियों में यह परेशानी इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि इस मौसम में हवा अधिक ड्राई होती है। सूखी हवा के कारण नाक और गले की नमी कम हो जाती है, जिससे कंजेशन, सूजन और सांस की नली में रुकावट बढ़ सकती है। इसका सीधा असर सांस लेने की प्रक्रिया पर पड़ता है और खर्राटों की आवाज तेज हो जाती है।
डॉक्टर्स के मुताबिक, हर व्यक्ति में खर्राटों की वजह अलग हो सकती है। जहां कुछ लोगों की नाक या गले की बनावट ऐसी होती है कि सोते समय उनकी सांस की नली जल्दी संकरी हो जाती है, जिससे खर्राटे आने लगते हैं। मोटापा भी खर्राटों का एक बड़ा कारण है। गर्दन के आसपास ज्यादा चर्बी जमा होने से एयरवे पर दबाव पड़ता है और हवा के प्रवाह में रुकावट आती है।
इसके अलावा, उम्र बढ़ने के साथ गले और जीभ की मांसपेशियों की ताकत कम होने लगती है। कमजोर मांसपेशियां सोते समय ज्यादा ढीली पड़ जाती हैं, जिससे खर्राटों की समस्या बढ़ सकती है।
दरअसल खर्राटे गले के पिछले हिस्से में मौजूद ढीले टिश्यू के हिलने (वाइब्रेशन) से पैदा होते हैं। और सोते समय शरीर की मांसपेशियां रिलैक्स हो जाती हैं, जिससे एयरवे (सांस की नली) कुछ हद तक संकरी हो जाती है। जब व्यक्ति सांस लेता या छोड़ता है, तो हवा इस संकरे रास्ते से गुजरते हुए ढीले टिश्यू को हिलाती है और यही कंपन आवाज के रूप में खर्राटों की वजह बनता है।
कुछ लोगों में गर्दन के अंदर मांसपेशियों और टिश्यू की बनावट या आकार ऐसा होता है कि एयरवे ज्यादा आसानी से संकरा हो जाता है, इसलिए उन्हें दूसरों की तुलना में ज्यादा खर्राटे आते हैं।
खर्राटे तब आते हैं जब सोते समय सांस की नली संकरी हो जाती है या गले की मांसपेशियां जरूरत से ज्यादा ढीली पड़ जाती हैं। इससे हवा का प्रवाह बाधित होता है और गले के टिश्यू हिलने लगते हैं, जिससे आवाज़ पैदा होती है।
मोटापा: गर्दन और गले के आसपास जमा अतिरिक्त चर्बी सांस की नली पर दबाव डालती है।
शराब का सेवन: सोने से पहले शराब पीने से गले और जीभ की मांसपेशियां अत्यधिक रिलैक्स हो जाती हैं।
नींद की दवाएं: स्लीपिंग पिल्स मांसपेशियों को ढीला कर देती हैं, जिससे एयरवे और संकरी हो जाती है।
नाक या गले की बनावट: टेढ़ी नाक की हड्डी, बढ़े हुए टॉन्सिल या जन्मजात संकरी एयरवे।
उम्र बढ़ना: उम्र के साथ गले की मांसपेशियों की ताकत कम हो जाती है।