Manisha Dhanwani
27 Sep 2025
Shivani Gupta
25 Sep 2025
न्यूयॉर्क। संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत-रूस संबंधों की मजबूती पर बयान दिया। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत और रूस के बीच गहरे और विशेष रणनीतिक साझेदारी पर जोर देते हुए कहा है कि भारत के राष्ट्रीय हितों का पूरी तरह सम्मान किया जाता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद या अन्य देशों के साथ उसके रिश्ते किसी भी तरह से भारत-रूस संबंधों के मानदंड को प्रभावित नहीं करते। लावरोव ने दोनों देशों के व्यापक द्विपक्षीय एजेंडा, व्यापार, सैन्य सहयोग, तकनीकी साझेदारी और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला।
सर्गेई लावरोव ने कहा कि, भारत की विदेश नीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा अपनाई गई रणनीतियां भारत के राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देती हैं। उन्होंने कहा, "हम भारत के राष्ट्रीय हितों का पूरा सम्मान करते हैं और प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति की सराहना करते हैं।"
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि, भारत और अमेरिका या अन्य देशों के साथ संबंधों का कोई भी प्रभाव भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी पर नहीं पड़ता।
लावरोव ने भारत और रूस के बीच लंबे समय से जारी रणनीतिक साझेदारी को विशेष महत्व देते हुए कहा कि, इसे अब विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी कहा जाता है। उनका कहना है कि, इस साझेदारी में न केवल सुरक्षा और सैन्य क्षेत्र शामिल हैं, बल्कि व्यापार, वित्त, उच्च तकनीक, स्वास्थ्य, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर घनिष्ठ समन्वय भी शामिल है।
लावरोव ने याद दिलाया कि हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान तियानजिन में मुलाकात की थी। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि दिसंबर में पुतिन भारत का दौरा करेंगे।
रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि, इस साल भारत के विदेश मंत्री जयशंकर रूस का दौरा करेंगे और वह स्वयं भी भारत का दौरा करेंगे। उन्होंने जोर दिया कि, दोनों देशों के बीच नियमित विचारों का आदान-प्रदान चलता रहता है और व्यापार या तेल की खरीद से जुड़े फैसले भारत की संप्रभुता और निर्णय क्षमता पर आधारित हैं।
लावरोव ने भारत के फैसलों की स्वतंत्रता की सराहना करते हुए कहा, "भारत में आत्मसम्मान है। चाहे तेल की खरीद हो या अन्य व्यापारिक निर्णय, यह पूरी तरह भारत का मामला है और किसी अन्य देश के एजेंडे से इसका कोई लेना-देना नहीं।" उन्होंने इसे एक सराहनीय उदाहरण बताया, जो दिखाता है कि भारत अपने निर्णयों में संप्रभु और आत्मनिर्भर है।