Aniruddh Singh
11 Oct 2025
नई दिल्ली। अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 50% टैरिफ लगाने से ठीक पहले भारत ने वाशिंगटन डीसी में दूसरी लॉबिंग फर्म मर्करी पब्लिक अफेयर्स को हायर किया है। इस फर्म के साथ भारत ने अगस्त 15 से तीन महीने के लिए 75,000 डॉलर प्रति माह का करार किया है। इसका मकसद अमेरिकी सरकार और मीडिया के साथ रणनीतिक संवाद स्थापित करना, सोशल मीडिया रणनीति तैयार करना और भारत की छवि को अमेरिकी नीति निर्माताओं के बीच मजबूत करना है। इस कदम के पीछे कई कारण बताए जाते हैं। सबसे प्रमुख वजह यह है कि रूस से कच्चा तेल खरीदने के कारण अमेरिका भारत पर दोगुना टैरिफ लगा रहा है। अमेरिका का मानना है कि भारत का यह कदम रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों को कमजोर कर रहा है और इसलिए उसे आर्थिक रूप से सजा देने की जरूरत है। 27 अगस्त से लागू हो रहे इस टैरिफ में 25% अतिरिक्त शुल्क भी शामिल है, जो सीधे तौर पर रूसी तेल आयात से जुड़ा हुआ है।
मर्करी फर्म की खास बात यह है कि इसके साथ कई ऐसे लोग जुड़े हैं जो पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टीम का हिस्सा रहे हैं। मर्करी कंपनी के दो प्रमुख साझेदार डेविड विटर, पहले लुइसियाना से रिपब्लिकन पार्टी के अमेरिकी सीनेटर रह चुके हैं। जबकि, ब्रायन लांजा जो 2020 में ट्रंप प्रशासन की ट्रांजीशन टीम के संचार निदेशक थे। भारत के लिए इस लॉबिंग फर्म की ओर से काम करेंगे। इन्हें चार सदस्यीय टीम सहयोग करेगी, जिसमें न्यूयॉर्क स्टेट सीनेट के लिए चुने जाने वाले पहले भारतीय-अमेरिकी केविन थॉमस भी शामिल हैं। मर्करी का ट्रम्प की चीफ ऑफ स्टाफ सूसी विल्स के साथ संबंध है, जो नवंबर 2024 तक फर्म में पंजीकृत लॉबिस्ट थीं। उल्लेखनीय है कि मर्करी पहले भी ट्रंप द्वारा निशाना बनाई गई कई चीनी कंपनियों का प्रतिनिधित्व कर चुकी है। 2018 में, मर्करी ने हांग्जो हिकविजन डिजिटल टेक्नोलॉजी कंपनी की अमेरिकी शाखा के लिए पैरवी की थी, जिसे चीन के शिनजियांग क्षेत्र में निगरानी परियोजनाओं पर काम करने के कारण अमेरिका ने निशाना बनाया था।
मर्करी ने प्रतिबंधित चीनी दूरसंचार कंपनी जेडटीई कॉर्प की ओर से भी पैरवी की है। भारत सरकार ने यह निर्णय इसलिए भी लिया है, क्योंकि पाकिस्तान अमेरिका में भारत की तुलना में बेहतर लॉबिंग कर रहा है। इसका असर हाल के दिनों में अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार के रूप में देखा जा रहा है। पाकिस्तान ने ट्रंप के पूर्व बॉडीगार्ड की लॉबिंग फर्म को हायर किया है, जबकि भारत ने अप्रैल में ट्रंप सहयोगी जैसन मिलर की फर्म एसएचडब्ल्यू पार्टनर्स के साथ सालभर के लिए 1.8 मिलियन डॉलर में करार किया है। अब भारत के पास दो प्रभावशाली फर्म हैं, दोनों ट्रंप-समर्थकों से जुड़ी हुई हैं, जो यह दिखाता है कि भारत गंभीरता से अमेरिकी राजनीतिक नेटवर्क में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। हालांकि यह पहली बार नहीं है कि भारत या कोई और देश अमेरिका में कई लॉबिंग फर्म हायर कर रहा है।
कई बड़े देश और कॉर्पोरेट कंपनियां एकसाथ 4-6 फर्म तक नियुक्त करते रहे हैं, क्योंकि हर फर्म की विशेषज्ञता अलग होती है। रूसी तेल पर भारत की स्थिति स्पष्ट है। भारत ने यह खरीद अपने राष्ट्रीय हित और बाजार की वास्तविकताओं के आधार पर की है, न कि किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत। जब पश्चिमी देशों ने रूस से तेल लेना बंद किया, तो भारत ने अवसर का लाभ उठाया और अपनी ऊर्जा जरूरतों को कम कीमत पर पूरा किया है। संक्षेप में, भारत ने अमेरिका के संभावित नुकसानदायक फैसलों से पहले ही राजनीतिक नेटवर्क में अपनी मौजूदगी को मजबूत करने की रणनीति अपना ली है। लॉबिंग फर्म की यह नियुक्ति अमेरिका के नीति निर्माताओं को यह समझाने की कोशिश है कि भारत की ऊर्जा नीतियां और रूस से संबंध उसके आर्थिक हितों के अनुसार हैं, और उन्हें दंडित करने का कोई औचित्य नहीं है।