Mithilesh Yadav
26 Nov 2025
आज इंसान ड्रीम करता है, डिसीजन लेता है, टेक्नोलॉजी बनाता है और यूनिवर्स को समझने की कोशिश करता है। लेकिन ये एबिलिटी अचानक नहीं आई। थिंकिंग प्रोसेस लाखों सालों में धीरे-धीरे डेवलप हुई। शुरुआत में इंसान सिर्फ सर्वाइव करने पर फोकस करता था। लेकिन समय के साथ उसका ब्रेन, अंडरस्टैंडिंग और थॉट्स चेंज होते गए।
शुरुआत में इंसान का ब्रेन आज के मुकाबले बहुत स्मॉल था। वे सिर्फ बेसिक नीड्स पर रिएक्ट करता था जैसे भूख, खतरा और मौसम से बचना। उस समय फीलिंग्स तो थीं लेकिन डीप अंडरस्टैंडिंग नहीं थी। इसलिए थिंकिंग सिर्फ इंस्टिंक्ट लेवल तक लिमिटेड थी।
जब इंसान ने आग की खोज की और उसे नियंत्रित करना सीखा, तभी उसकी सोच में बड़ा बदलाव आया। अब अंधेरा डर नहीं रहा, बल्कि रोशनी और सुरक्षा का साधन बन गया। आग ने गर्मी, भोजन और रक्षा दी। यहीं से तर्क, प्रयोग और निर्णय लेने की शुरुआत हुई।
जब इंसान ने पत्थरों को आकार देकर औजार बनाए, तब उसे एहसास हुआ कि वह अपने आसपास की चीजों को बदल सकता है। इससे योजना बनाना, भविष्य की सोच और कारण-परिणाम को समझने की क्षमता बढ़ी। यही मानव बुद्धि के विकास की असली शुरुआत थी।
भाषा आने के बाद इंसान सिर्फ इशारों से नहीं, बल्कि शब्दों में बात करने लगा। इससे विचार, भावनाएं और ज्ञान आपस में बांटे जाने लगे। भाषा ने कहानियों, संस्कृति और कल्पना को जन्म दिया और यही वह पल था जब मानव सोच मजबूत होने लगी।
जब इंसान ने प्रकृति, आकाश और मौसम को ध्यान से देखना शुरू किया, तो उसके मन में सवाल पैदा हुए ये कैसे होता है यही जिज्ञासा सोच का ईंधन बनी। सवालों ने पहले विश्वास और कल्पनाएं बनाईं, फिर दर्शन आया और आगे चलकर विज्ञान जन्मा।
समूह में रहना, नियम बनाना और खेती शुरू करने से इंसान ने भविष्य की योजना बनानी सीखी। अब वह सिर्फ जीवित रहने की नहीं बल्कि जीवन बेहतर बनाने की सोचने लगा। अनुभव, भाषा और जिज्ञासा के साथ इंसान एक सामान्य जीव से विकसित होकर समझदार, रचनात्मक और नवाचारी प्राणी बन गया।