Aniruddh Singh
11 Oct 2025
नई दिल्ली। फिच रेटिंग्स ने भारत की दीर्घकालिक विदेशी मुद्रा जारीकर्ता डिफॉल्ट रेटिंग (आईडीआर) को ‘बीबीबी-’ पर स्थिर दृष्टिकोण के साथ बनाए रखा है। फिच ने यह निर्णय भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि और सुदृढ़ बाह्य वित्तीय स्थिति को देखते हुए लिया है। फिच का मानना है कि अमेरिका द्वारा प्रस्तावित टैरिफ भारत की जीडीपी पर केवल मामूली प्रभाव डालेगा, क्योंकि अमेरिका को भारत का निर्यात देश के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 2% है। हालांकि, यह व्यापारिक अनिश्चितता निवेशकों की भावना और निवेश निर्णयों को प्रभावित कर सकती है। फिच ने वित्त वर्ष 2026 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.5% रहने का अनुमान जताया है, जो कि BBB श्रेणी के अन्य देशों की औसत दर 2.5% से कहीं अधिक है। हालांकि, नाममात्र जीडीपी वृद्धि दर में कुछ गिरावट आई है, जो वित्तवर्ष 24 में 12.0% से घटकर वित्तवर्ष 26 में 9.0% रहने की संभावना है। यह गिरावट मुख्य रूप से निजी निवेश में कमजोरी और वैश्विक व्यापारिक दबावों के कारण मानी जा रही है। फिर भी, सार्वजनिक पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) और निजी खपत में निरंतरता के कारण घरेलू मांग मजबूत बनी हुई है।
फिच ने कहा कि अगर अमेरिका भारत पर 50% टैरिफ लागू करता है, तो इससे भारत की चीन से आपूर्ति श्रृंखला स्थानांतरण से लाभ उठाने की क्षमता सीमित हो सकती है। हालांकि, प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सुधार अगर लागू होते हैं, तो वे उपभोग को समर्थन देंगे और कुछ हद तक विकास जोखिमों को संतुलित कर सकते हैं। मुद्रास्फीति के मोर्चे पर फिच का मानना है कि भारत को एक और 25 बेसिस प्वाइंट की ब्याज दर में कटौती का अवसर मिल सकता है। खाद्य कीमतों में गिरावट और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की नीतियों के चलते महंगाई नियंत्रित रही है। जुलाई में हेडलाइन मुद्रास्फीति 1.6% पर आ गई, जिसमें मुख्यतः खाद्य कीमतों में नरमी के कारण गिरावट आई। इसके अलावा, आरबीआई ने फरवरी से जून 2025 के बीच अपनी रेपो दर को 100 बेसिस प्वाइंट घटाकर 5.5% कर दिया है।
मध्यम अवधि में फिच को भारत की संभावित जीपीपी वृद्धि दर 6.4% रहने की उम्मीद है, जो सार्वजनिक निवेश, निजी निवेश में संभावित सुधार और अनुकूल जनसांख्यिकी से प्रेरित होगी। हालांकि, भूमि और श्रम सुधार जैसे बड़े संरचनात्मक सुधारों को लागू करना राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण रहेगा। राजकोषीय दृष्टि से भारत ने हाल के वर्षों में अपनी वित्तीय विश्वसनीयता में सुधार किया है। वित्तवर्ष 21 में जहां केंद्र सरकार का घाटा 9.2% था, वह वित्तवर्ष 25 में घटकर 4.8% और वित्तवर्ष 26 में 4.4% तक आने की उम्मीद है। हालांकि, वित्तवर्ष 27 और वित्तवर्ष 28 में घाटा धीरे-धीरे कम होकर क्रमशः 4.2% और 4.1% होने की संभावना है। इसी दौरान, पूंजीगत व्यय बढ़कर जीडीपी का 3.2% हो गया है, जो 2019 में 1.5% था। इससे बुनियादी ढांचे में सुधार और संभावित वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।
हालांकि, भारत का कुल सरकारी ऋण अभी भी जीडीपी के 80.9% पर है, जो बीबीबी देशों के औसत 59.6% से कहीं अधिक है। यह ऋण 2026 में 81.5% तक बढ़ सकता है, लेकिन सरकार का लक्ष्य वित्तवर्ष 31 तक इसे 50% के आसपास लाने का है। विदेशी मुद्रा भंडार, जो अब यूएसडी 695 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, भारत की बाहरी वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाता है। चालू खाता घाटा वित्तवर्ष 26 में 0.7% रहने की उम्मीद है, जो कि नियंत्रित स्तर पर है। फिच का मानना है कि भारत की आर्थिक बुनियाद मजबूत है, और हालिया नीतिगत सुधारों और वित्तीय अनुशासन के चलते इसकी साख बनी रहेगी, हालांकि कुछ जोखिम जरूर मौजूद हैं।