Shivani Gupta
15 Sep 2025
Hemant Nagle
15 Sep 2025
Peoples Reporter
15 Sep 2025
Manisha Dhanwani
15 Sep 2025
प्रीति जैन- इन दिनों हफ्ते में 70 और 90 घंटे काम करने को लेकर बहस जारी है। यह बहस उस समय शुरू हुई थी, जब इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने कर्मचारियों को हफ्ते में 70 घंटे काम करने का सुझाव दिया था। इसके बाद हाल ही में एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने हफ्ते में 90 घंटे काम करने को लेकर इस बहस को और बढ़ा दिया। सुब्रह्मण्यन ने तो यह तक कह दिया कि अगर उनका बस चले तो वह कर्मचारियों को रविवार को भी काम पर बुला लें, लेकिन उनके इस बयान के बाद उद्योगपतियों से लेकर बॉलीवुड सेलेब्स तक ने उनकी निंदा की है। यहां तक की शहर में कुछ लोगों ने अपनी पत्नी को निहारते हुए फोटोज फेसबुक पर शेयर किए और लिखा, मैं अपनी पत्नी को निहार सकता हूं। इससे सोशल मीडिया पर कर्मचारियों के वर्क ऑवर पर बहस छिड़ गई है।
आनंद महिंद्रा ने कहा कि काम की क्वालिटी अहम है न ही क्वांटिटी। सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने उद्योगपति आनंद महिंद्रा से सहमति जताते हुए एक्स पर लिखा, मेरी पत्नी नताशा पूनावाला भी मुझे अद्भुत मानती है, वह रविवार को मुझे देखना पसंद करती है। क्वांटिटी की बजाए क्वालिटी पर ध्यान दें। वहीं मनोविशेषज्ञों ने भी माना है कि हफ्ते में काम के घंटे 50 से ऊपर होने पर प्रोडक्टिविटी घटने लगती है, जो मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं, क्योंकि यदि व्यक्ति ऑफिस में ही काम करता रहेगा तो खुद को फिजिकल और मेंटली फिट रखने के लिए कब काम करेगा। सामाजिक जुड़ाव व मानसिक शांति के लिए समय चाहिए लेकिन वर्कलोड कर्मचारी को इन सभी से दूर कर देता है, जो कि उसकी क्वालिटी ऑफ लाइफ के लिए जरूरी है। आज के समय में जब कई कंपनियां हफ्ते में चार से पांच दिन काम को प्राथमिकता दे रही हैं, ताकि वो अपने हॉबीज पर काम कर सके व परिवार के साथ समय बिता सके।
लगातार काम करते रहने से इंसान में ओवरथिंकिंग, इमोशनल डिस्टर्बेंस, नींद की क्वालिटी, रिलेशनशिप, पारिवारिक संबंध प्रभावित होने लगते हैं। हर इंसान की मानसिक सीमाएं होती हैं, जिसे पार करते ही वो लगातार काम करते रहने के लिए कैफीन और नशे पर निर्भर होने लगता है। यदि कोई हफ्ते में 90 घंटे काम करने की बात कर रहा है तो यह पूंजीवादी सोच का परिणाम है, जहां मनुष्य के जीवन से रचनात्मकता को छीन लिया जाता है। पूंजीवाद चाहता है कि हर व्यक्ति हर समय काम से जुड़ा रहे और पूंजीवाद बढ़ता रहे। यह सोच हमारे जीवन की गुणवत्ता को तो नष्ट करता ही है, साथ ही हमारी प्रोडक्टिविटी को भी कम करती है। जीवन में वर्क लाइफ बैलेंस पर सबसे ज्यादा जरूरी है। मानसिक रूप से इंसान की भी सीमाएं होती हैं। वर्क प्रेशर के कारण तनाव बढ़ता जाता है, जिससे व्यक्ति कैफीन व नशे की लत का शिकार होने लगता है। कर्मचारियों को पर्याप्त छुट्टी व आराम मिलना चाहिए। - डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, मनोचिकित्सक
लंबे समय तक कुर्सी पर बैठने से कई शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं। लंबे समय तक बैठने से रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है, जिससे पीठ और गर्दन में दर्द और कंधों में जकड़न की समस्या हो जाती है। साथ ही ज्यादा देर बैठने से वजन बढ़ना व तनाव भी बढ़ जाता है। इससे हृदय, मधुमेह व पेट की समस्याएं भी हो सकती हैं। ज्यादातर लोग लैपटॉप, कंप्यूटर पर काम के कारण हो रही समस्याओं के निदान के लिए आते हैं, ऐसे में और काम करवाने की बात ठीक नहीं। - अनंत सिंह, फिजियोथैरेपिस्ट
एक इंसान के इर्द-गिर्द परिवार, दोस्त, सेहत, शौक, भावनाएं जैसी कई चीजें होती हैं, इनके लिए वक्त निकालना बहुत जरूरी है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के स्टडी के मुताबिक, सप्ताह में 50 घंटे काम करने के बाद प्रोडक्टिविटी कम होने लगती है। विदेशों में अब चार से पांच दिन की वर्किंग होती है। वीकएंड पर कर्मचारी पूरी तरह से खुद के लिए वक्त निकालते हैं। इस दौरान कई कंपनियां ई- मेल चेक करने की बाध्यता भी नहीं रखतीं। -डॉ. शिखा रस्तोगी, मनोविशेषज्ञ