Garima Vishwakarma
14 Nov 2025
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की प्रतिपदा से अमावस्या तक की अवधि को पितृ पक्ष कहते हैं। इस साल पितृ पक्ष 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या तक चलेगा। इन 15 दिनों में पितरों की स्मृति में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्म किए जाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा तृप्त होती है, पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
आमतौर पर लोग मानते हैं कि श्राद्ध सिर्फ मरे हुए पूर्वजों का किया जाता है। लेकिन, शास्त्रों में इसका उल्लेख है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में जीवित व्यक्ति भी अपना श्राद्ध कर सकता है। इसे आत्मश्राद्ध या जीवित श्राद्ध कहा जाता है।
गरुड़ पुराण और धर्मशास्त्रों के अनुसार, जीवित श्राद्ध करना शास्त्र सम्मत है। इसका उद्देश्य यह होता है कि व्यक्ति मृत्यु से पहले ही अपनी आत्मा को संतुष्टि दे दे, ताकि मरने के बाद आत्मा को भटकना न पड़े।
आम गृहस्थ व्यक्तियों के लिए जीवित श्राद्ध करना शास्त्र सम्मत नहीं माना गया है। उनके लिए श्राद्ध का विधान केवल मृत्यु के बाद ही होता है।