इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय का साप्ताहिक प्रार्दश : प्रियजन के लिए बुनी जाती है कपड़ागोदा शॉल
पहले वे पत्तों और फूलों जैसे हल्दी, सेम के पत्ते, जंगली बीजों से पीले, हरे और लाल रंग तैयार करते थे
Publish Date: 21 Sep 2021, 11:57 AM (IST)Reading Time: 2 Minute Read
भोपाल। ओडिशा के डोंगरिया कोंध समुदाय द्वारा तैयार की जाने वाली कपड़ा गोदा शॉल ज्यादातर अविवाहित लड़कियों द्वारा बुनी जाती है, जो उनकी कुशल कशीदाकारी है। अविवाहित महिलाएं अपने प्रियजन को प्रेम के प्रतीक के रूप में उपहार देने के लिए इस शॉल पर कढ़ाई करती हैं। यह उनके द्वारा अपने भाई या पिता को स्नेह के प्रतीक के रूप में भी उपहारस्वरूप दिया जाता है।
निर्माण सामग्री के रूप में उपयोग किए जाने वाले सफेद मोटे कपड़े डोम समुदाय से अनाजों से विनिमय कर प्राप्त किए जाते हैं। रंग-बिरंगे धागों का उपयोग करके सुई की मदद से कपड़े पर रूपांकनों की कढ़ाई की जाती है। पहले वे पत्तों और फूलों जैसे हल्दी, सेम के पत्ते, जंगली बीजों से पीले, हरे और लाल रंग तैयार करते थे। रंग को फीका होने से बचाने के लिए वे केले के फूल का इस्तेमाल करते हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा सप्ताह का प्रादर्श में इसका प्रदर्शन किया गया है।
विवाह और उत्सवों पर ओढ़ते हैं यह शॉल
पीला रंग शांति, एकता, स्वास्थ्य और खुशी का प्रतीक है। यह उनके समुदाय की उत्पत्ति भी बताता है। हरा रंग उनके उर्वर पहाड़ों, सामुदायिक समृद्धि एवं विकास का प्रतीक है। लाल रंग रक्त, ऊर्जा, शक्ति और प्रतिकार का प्रतीक होने के साथ ही चढ़ावे व बलि द्वारा देवताओं को प्रसन्न करने का भी प्रतीक है। शॉल में हाथ से बुने हुए रूपांकन मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार की रेखाएं और त्रिकोणीय आकार होते हैं। विवाह और उत्सव के अवसरों पर इसे ओढ़ा जाता है।