Aakash Waghmare
12 Nov 2025
भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार के वरिष्ठ तथा ‘श्रम, ग्रामीण विकास एवं पंचायत’ मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल इन दिनों अपनी नर्मदा परिक्रमा की अनुभूतियों पर आधारित पुस्तक ’परिक्रमा’ के कारण चर्चाओं में हैं। पटेल मां नर्मदा नदी की पवित्रता को बचाए रखने के अलावा नशामुक्ति और सामाजिक उद्देश्य को लेकर पिछले 30 वर्षों के दौरान कई पदयात्राएं कर चुके हैं। मंत्री पटेल ने बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र शास्त्री की ‘सनातन एकता पदयात्रा’ और निराहार तपस्वी दादा गुरु की ‘नर्मदा परिक्रमा’ को राष्ट्र, समाज और पर्यावरण के प्रति जन जाग्रति लाने की दिशा में एक सार्थक पहल बताया है। मंत्री पटेल ने पीपुल्स समाचार के लिए अमिताभ बुधौलिया से पदयात्राओं से प्राप्त ऊर्जा और उनकी महत्ता पर आध्यात्मिक दृष्टिकोंण से बात की...
पंडित धीरेंद्र शास्त्री और दादा गुरु की पदयात्रा को लेकर मध्य प्रदेश सरकार में श्रम, ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल से विशेष साक्षात्कार...
पदयात्राएं कालग्राही होती हैं। अर्थात, उनकी ऊर्जा को काल भी अपना ग्रास नहीं बना सकता। जब आप धरती पर चलते हैं, तो इसका मतलब है कि आप धरती मां से कोई न कोई संदेशा प्राप्त करते हैं। लेकिन जो अभिव्यक्ति होती है, वो अलग-अलग तरह की हो सकती है। इसलिए धरती से हमें जो संदेश मिलते हैं, जो अनुभव और अनुभूतियां प्राप्त होती हैं, वो आत्ममंथन-वैचारिक विमर्श के उपरांत ही जनमानस के सामने लानी चाहिए। सनातन संस्कृति में शास्त्रार्थ का प्रावधान रहा है। आदि गुरु शंकराचार्य की पैदल यात्रा में शास्त्रार्थ पहले होता था, ताकि भविष्य की रूपरेखा स्पष्ट रहे। इसलिए, इसमें कोई संदेह नहीं कि पदयात्राएं सदैव युग परिवर्तनकारी होती हैं।
दादा गुरु जी विलक्षण संत हैं, चाहे हम उन्हें भौतिक रूप से देखें या वैज्ञानिक कसौटी से। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से वे प्रकृति आराध्य जीवन का प्रमाण हैं। जिन लोगों के पास तर्क-वितर्क और कुतर्क हैं या जिनको विज्ञान पर अहंकार है; वो दादा गुरु के जीवन पर प्रयोग कर सकते हैं।इससे बेहतर अवसर न केवल देश, बल्कि दुनिया के सामने भी नहीं होगा कि कैसे कोई व्यक्ति 24 घंटे में केवल एक बार जल लेकर भी चुस्त-दुरुस्त है। सभी शारीरिक गतिविधियां पूर्ण ऊर्जा से करता है।
दरअसल, हमारा जो शरीर और सूक्ष्म शरीर है, विज्ञान भी उसमें अंतर महसूस नहीं कर पाता है। दुनियाभर के अनुसंधाकर्ताओं से मेरी प्रार्थना है कि यदि इसमें साक्षात फर्क देखना है, तो वे दादा गुरु की पदयात्रा में सम्मिलित होकर उनके जीवन पर प्रयोग करें।
उनकी पदयात्रा का जैसा उद्देश्य होगा, वैसा फल मिलेगा। पंडित धीरेंद्र शास्त्री जी का हिंदुत्व के लिए अपना एक मिशन है। वैसे भी; यदि कोई परिक्रमावासी है, तो मैं उसकी जाति, पार्टी या मनोस्थिति नहीं देखता। मैं केवल पथिकों के चरणों को देखता हूं। वो परिक्रमा कर रहा है न; बस ये बहुत हैं। परिक्रमा कैसी कर रहा है? जूता पहनकर, वाहन से या पैदल कर रहा है; ये तर्क-वितर्क हो सकते हैं, लेकिन वो परिक्रमा कर तो मां की ही रहा है न! अगर कोई पैदल चल रहा है, तो मैं हमेशा मानता हूं कि वो कुछ न कुछ तो लेकर ही लौटेगा, यह तय है।
माँ नर्मदा जी की परिक्रमा का एक विधान है। उसमें नर्मदा में स्नान नहीं करते; शरीर का गंदा पानी नहीं छोड़ते। मेरे गुरुदेव (आराध्य श्रीश्री बाबाश्री जी) मुझसे कहते थे कि स्नान भी इतनी दूर करो कि रिसकर भी गंदा पानी नर्मदा जी में न जाए। आप कपड़े धो लो, सीधे नहा लो; ये कतई नहीं हो सकता है। दूसरा; वो कहते थे कि जहां भी जा रहे हो, वहां स्वच्छता रखो क्योंकि आपके पीछे भी तो कोई परिक्रमावासी आ रहा है वहां।
संतों का भाव है कि; नर्मदा के किनारे जीवन है, तो जीवन की विविधताएं भी हैं। वो विविधताएं देखते हुए चलिए, उनसे प्रभावित होकर ठहरना नहीं हैं। इसलिए स्वच्छता, पर्यावरण और नदी संरक्षण…परिक्रमा का मूल विधान है?
मेरा अनुभव है कि आप जितना भी नंगे पैर धरती से संपर्क में होंगे, उतने ही प्रकार के ‘ताप’ आपके भीतर आएंगे, परन्तु दुष्प्रभाव धरती में वापस भी चले जाएंगे। अध्यात्म कहता है कि धरती पर जिस जगह से आप निकल रहे हैं, उसके एक कण का भी महत्व है। हो सकता है कि वो किसी तपस्वी के तप का स्थान रहा हो; वो आपको एक अलग प्रकार की ऊर्जा देगा। ये भी हो सकता है कि कोई ऐसी जगह हो, जो आपको क्रोध दे; तब? श्रीश्री बाबाश्री जी कहते थे कि अगर कभी क्रोध आए, तो आप एक कदम आगे-पीछे कर लो, निश्चय ही आपका मानस बदल जाएगा।
आप धरती से नकारात्मक ऊर्जा लेते हैं या सकारात्मक; ये चयन करना आपकी मानसिकता पर निर्भर हैं। क्योंकि धरती वही है, लेकिन उसका स्वभाव हर जगह एक सा नहीं होता। हर बिंदु, हर कदम पर परिवर्तन मिलेंगे।