Aakash Waghmare
12 Nov 2025
भोपाल। राजधानी के केरवा डैम ब्रिज का स्लैब गिरने के एक दिन बाद बुधवार को जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट मौके पर पहुंचे और हालात का जायजा लिया। मंगलवार को गेट नंबर 8 के ऊपर बना सीमेंट कंक्रीट का बड़ा हिस्सा अचानक भरभराकर गिर गया था। गनीमत यह रही कि हादसे के समय कोई वहां मौजूद नहीं था, वरना बड़ी जनहानि हो सकती थी। हादसे के बाद सुरक्षा को लेकर गंभीर चूकें सामने आई हैं- न तो इलाके को बंद किया गया और न ही लोगों के आने-जाने पर रोक लगाई गई।
बुधवार को मंत्री तुलसीराम सिलावट खुद केरवा डैम पहुंचे और ढहे हुए हिस्से का मुआयना किया। उन्होंने विभागीय अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी और मरम्मत कार्य जल्द शुरू करने के निर्देश दिए। हालांकि मौके पर यह भी देखा गया कि डैम इंचार्ज नितिन कुहिकर मीडिया से बात करने से बचते रहे। स्थानीय लोगों ने अधिकारियों पर लापरवाही के आरोप लगाए हैं कि हादसे के बाद भी डैम क्षेत्र में लोगों की आवाजाही रोकी नहीं गई।

जानकारी के अनुसार, कुल 8 गेटों में से 3 के ऊपर का स्लैब ढह चुका है, जबकि बाकी हिस्से की स्थिति भी ठीक नहीं बताई जा रही। कई जगहों पर सरिये सड़क चुके हैं, प्लास्टर झड़ रहा है और कंक्रीट के टुकड़े लटक रहे हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि पिछले कई महीनों से ब्रिज की हालत खराब थी, लेकिन विभाग ने इसकी मरम्मत पर कोई ध्यान नहीं दिया।
हादसे के बाद भी लोगों का यहां आना-जाना जारी है। जल संसाधन विभाग के अधिकारी सुबह तो पहुंचे, लेकिन बाद में कोई नहीं दिखा। यहां तक कि टूटे हिस्से को लेकर कोई चेतावनी बोर्ड या बैरिकेडिंग तक नहीं लगाई गई। स्थानीय लोगों ने इसे “बड़ी प्रशासनिक लापरवाही” बताया है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, इस बार केरवा डैम पूरी तरह नहीं भरा गया था। जहां कोलार, भदभदा और कलियासोत डैम के गेट कई बार खोले गए, वहीं केरवा डैम का एक भी गेट नहीं खोला गया। अगर डैम में पानी भरा होता तो सैकड़ों लोग यहां प्राकृतिक नजारे देखने आते, जिससे हादसे के समय बड़ी दुर्घटना हो सकती थी। फिलहाल, कम पानी और सीमित भीड़ के कारण बड़ा नुकसान टल गया।
प्रत्यक्षदर्शी शाहिद खान ने बताया कि हादसे के कुछ ही पल पहले वह ब्रिज के ऊपर से गुजरे थे। मैं गेट के ऊपर बना स्लैब पार कर रहा था, तभी पीछे से तेज आवाज आई और स्लैब का हिस्सा नीचे गिर गया। अगर मैं कुछ देर रुकता, तो शायद जिंदा नहीं बचता। उन्होंने बताया कि इस रास्ते से रोजाना गांव के कई लोग गुजरते हैं और बारिश के मौसम में हजारों सैलानी यहां आते हैं।
बताया जाता है कि केरवा डैम का निर्माण भदभदा डैम से भी पहले हुआ था। भदभदा डैम वर्ष 1965 में बना, जबकि केरवा डैम लगभग 50 साल पुराना बताया जा रहा है। पत्थर की चुनाई से बना यह डैम अब जर्जर अवस्था में पहुंच चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी पुरानी संरचना की नियमित तकनीकी जांच और मरम्मत जरूरी है, जो अब तक उपेक्षित रही है।
जल संसाधन मंत्री सिलावट ने कहा कि हादसे की तकनीकी जांच कराई जाएगी। प्राथमिक तौर पर यह संरचनात्मक कमजोरी और रखरखाव की कमी का मामला लगता है। हमने अधिकारियों को मरम्मत कार्य तत्काल शुरू करने के निर्देश दिए हैं। वहीं, विभाग के सूत्रों ने बताया कि फिलहाल ब्रिज के उस हिस्से को बंद कर दिया गया है, ताकि आगे कोई हादसा न हो।