Manisha Dhanwani
26 Oct 2025
वाशिंगटन डीसी। संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका ने पिछले दिनों कहा कि अगले संयुक्त राष्ट्र महासचिव का चुनाव मेरिट के आधार पर होना चाहिए। अमेरिका ने कहा कि वह अगले संयुक्त राष्ट्र महासचिव के चुनाव के लिए दुनिया के किसी भी क्षेत्र से उम्मीदवारों पर विचार करेगा। अमेरिका का यह रुख लैटिन अमेरिकी देशों को नाराज कर सकता है, क्योंकि परंपरागत रूप से महासचिव का पद क्षेत्रीय आधार पर बारी-बारी से दिया जाता है और इस बार लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र की बारी मानी जा रही थी। संयुक्त राष्ट्र का दसवां महासचिव अगले वर्ष चुना जाएगा, जिसका कार्यकाल 1 जनवरी 2027 से शुरू होगा और पांच वर्ष तक चलेगा। अमेरिकी उप-राजदूत डोरोथी शिया ने कहा कि इतने महत्वपूर्ण पद के चयन की प्रक्रिया पूरी तरह योग्यता आधारित होनी चाहिए, जिसमें सभी क्षेत्रों के उम्मीदवारों को मौका मिले। उन्होंने कहा कि अमेरिका सभी क्षेत्रीय समूहों से नामांकन आमंत्रित करने के पक्ष में है।
आधिकारिक रूप से यह प्रक्रिया तब शुरू होगी, जब 15 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और 193 सदस्यों वाली जनरल असेंबली के अध्यक्ष संयुक्त रूप से नामांकन आमंत्रित करने के लिए इस साल के अंत में संयुक्त पत्र भेजेंगे। उम्मीदवारों को संयुक्त राष्ट्र संघ के किसी सदस्य देश द्वारा नामित किया जाता है। दूसरी ओर, लैटिन अमेरिकी देश इस पद पर अपनी दावेदारी को लेकर दृढ़ हैं। पनामा के उप-राजदूत रिकार्डो मोस्कोसो ने सुरक्षा परिषद में शुक्रवार को कहा कि वे आशा करते हैं कि चयन प्रक्रिया में विकासशील देशों के अनुभव और नेतृत्व क्षमता को मान्यता दी जाएगी, विशेष रूप से लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई क्षेत्र से। पनामा वर्तमान में दो वर्ष के लिए सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है।
हालांकि, अंतिम निर्णय सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्य देशों, अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस की सहमति पर निर्भर करेगा। इन्हें वीटो का अधिकार प्राप्त है, इसलिए किसी भी उम्मीदवार का चयन इनकी आपसी सहमति के बिना संभव नहीं है। रूस के राजदूत वासिली नेबेंजिया ने कहा कि महासचिव का पद क्षेत्रीय रूप से बारी-बारी से दिया जाना एक परंपरा है, कोई नियम नहीं। उन्होंने माना कि लैटिन अमेरिका को इस बार नैतिक आधार पर यह पद मिलना चाहिए, लेकिन इससे अन्य क्षेत्रों के उम्मीदवारों को रोक नहीं जा सकता। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण मापदंड योग्यता है। उन्होंने कहा यदि कोई महिला योग्यता के आधार पर चुनी जाती है, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं, लेकिन योग्यता लिंग से पहले आती है।
वहीं, कई देशों ने पहली बार किसी महिला को संयुक्त राष्ट्र प्रमुख बनाने की मांग को समर्थन दिया है। डेनमार्क की राजदूत क्रिस्टीना मार्कस लासेन ने कहा, संयुक्त राष्ट्र की स्थापना को 80 वर्ष हो चुके हैं, अब समय आ गया है कि इस संगठन का नेतृत्व एक महिला के हाथ में हो। अमेरिका की इस पहल को कई विशेषज्ञ परंपरा से हटकर कदम मान रहे हैं। लैटिन अमेरिकी देश इसे अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधित्व की बारी छिनने के रूप में देख सकते हैं, जबकि अमेरिका और उसके सहयोगी इसे वैश्विक योग्यता और समान अवसर के नाम पर न्यायसंगत प्रक्रिया कह रहे हैं। यह मुद्दा आने वाले महीनों में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का प्रमुख विषय बनने जा रहा है।