Priyanshi Soni
1 Nov 2025
धर्म डेस्क। गुरु नानक जयंती सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक गुरु नानक देव जी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। यह सिखों का सबसे बड़ा और पवित्र त्योहार है। इस दिन को लोग ‘गुरुपरब’ या ‘प्रकाश पर्व’ के नाम से भी जानते हैं। हर साल यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जिसे हिंदू पंचांग के अनुसार बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन सिख समुदाय ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लोग प्रेम और श्रद्धा के साथ गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को याद करते हैं। आइए जानते हैं, इस बार गुरु नानक जयंती कब मनाई जाएगी और इस दिन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व क्या है।
गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था, जिसे आज ननकाना साहिब (पाकिस्तान के पंजाब प्रांत) के नाम से जाना जाता है। यही वह पवित्र भूमि है, जहां से उन्होंने अपने आध्यात्मिक और सामाजिक सुधारों का संदेश दुनिया तक पहुंचाया।
इस बार गुरु नानक जयंती पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ 5 नवंबर 2025 (बुधवार) को मनाई जाएगी। यह उनका 556वां प्रकाश पर्व होगा। यह पवित्र दिवस कार्तिक पूर्णिमा को पड़ता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार अत्यंत शुभ तिथि मानी जाती है।
गुरु नानक जयंती से दो दिन पहले गुरुद्वारों में ‘अखंड पाठ’ की परंपरा निभाई जाती है, जिसमें 48 घंटे तक गुरु ग्रंथ साहिब का लगातार पाठ होता है। जयंती से एक दिन पहले ‘नगर कीर्तन’ निकाला जाता है। इस शोभायात्रा की शुरुआत ‘पंज प्यारे’ (सिख धर्म के पांच प्रियजन) करते हैं। इनके पीछे श्रद्धालु कीर्तन करते हुए चलते हैं और निशान साहिब (सिख ध्वज) लहराते हैं।
गुरु नानक जयंती के दिन सभी गुरुद्वारों में कीर्तन दरबार, प्रवचन और लंगर का आयोजन किया जाता है। भक्त भोर से ही प्रभात फेरियों में शामिल होकर गुरु के भजनों का गुणगान करते हैं।

गुरु नानक जयंती का सबसे पवित्र हिस्सा है लंगर यानी बिना भेदभाव के सभी को भोजन कराना। यह परंपरा गुरु नानक देव जी के बचपन की उस घटना से जुड़ी है, जब उनके पिता ने उन्हें कुछ पैसे देकर ‘सच्चा सौदा’ करने को कहा था। नानक देव जी ने उन पैसों से भोजन खरीदा और भूखे संतों को खिलाया। उन्होंने कहा कि, यही है सच्चा सौदा। तभी से लंगर सिख धर्म का अभिन्न हिस्सा बन गया, जो समानता और मानवता का प्रतीक है।
लंगर का अर्थ है किसी भी जरूरतमंद को भोजन कराना चाहे उसकी जाति, वर्ग, धर्म या लिंग कुछ भी हो, उसका स्वागत हमेशा गुरु के अतिथि के रूप में किया जाता है।
गुरु नानक देव जी ने जीवनभर समानता, प्रेम, सेवा और सत्य का संदेश दिया। उनके उपदेश तीन मुख्य सिद्धांतों में समाहित हैं-
नाम जपो: ईश्वर का नाम सच्चे मन से स्मरण करो।
किरत करो: ईमानदारी और मेहनत से अपनी आजीविका चलाओ।
वंड छको: अपनी कमाई और संसाधन दूसरों के साथ बांटो।
उनका संदेश था कि, ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान, सब एक ही परमात्मा की संतान हैं।
गुरु नानक देव जी ने समाज की बुराइयों, अंधविश्वासों और भेदभाव का विरोध किया। उन्होंने सरल जीवन, सच्ची कमाई और सेवा को सर्वोच्च बताया। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने 500 साल पहले थे। उनके मुताबिक, ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग मंदिर या मस्जिद से नहीं, बल्कि सच्चे कर्म और मानव सेवा से होकर गुजरता है।
गुरु नानक जयंती को ‘प्रकाश पर्व’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह ज्ञान, सत्य और मानवता के उजाले का प्रतीक है। इस दिन गुरुद्वारे जगमग रोशनी से सजाए जाते हैं, नगर कीर्तन से वातावरण भक्तिमय हो उठता है। इसके साथ ही और लंगर में हर धर्म, जाति, वर्ग के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।
गुरु नानक देव जी ने सिखाया कि जीवन में सच्ची खुशी दूसरों की सेवा, सत्य बोलने और ईश्वर की भक्ति में है। उनका एक ही संदेश था- एक ओंकार सतनाम अर्थात् ईश्वर एक है और वह हर जीव में बसता है। गुरु नानक जयंती हमें यह याद दिलाती है कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।