Shivani Gupta
5 Nov 2025
भूपेन हजारिका, जिन्हें बचपन में प्यार से बोर मोइना कहा जाता था, असम की ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे पैदा हुए। वे एक महान संगीतकार और गायक थे, जिनकी आवाज और संगीत लोगों को मोह लेते थे। ‘ओ गंगा तुम बहती हो क्यों’ और ‘दिल हूम हूम करे’ जैसे गीत उनकी अमूल्य धरोहर हैं। भारत सरकार ने उनके योगदान को सम्मानित करते हुए उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा। भले ही वे हमारे बीच नहीं रहे, उनका संगीत आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।
हजारिका का जन्म असम के तिनसुकिया जिले की सदिया में हुआ था। 10 बच्चों में सबसे बड़े, हजारिका को अपनी मां की वजह से संगीत से लगाव हुआ। उन्होंने मात्र 10 साल की उम्र में अपने लिखे गाने को गाया था। साथ ही उन्होंने असमिया सिनेमा की दूसरी फिल्म 'इंद्रमालती' के लिए 1931 में काम किया। उस समय उनकी उम्र मात्र 12 साल थी। हजारिका ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए किया। इसके बाद उन्होंने न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ली।
जब भूपेन हजारिका सिर्फ 10 साल के थे, तब असमी लेखक और प्लेराइटर ज्योति प्रसाद अगरवाला और असमी फिल्ममेकर बिष्णु प्रसाद रभा ने उनकी प्रतिभा देखी। इसी समय उन्होंने एक कार्यक्रम में अपनी मां द्वारा सिखाया गया गीत गाया, जिसे सुनकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए। यह उनका पहला गाया हुआ गीत था। असम के संस्कृति से उनका रिश्ता इससे और मजबूत हुआ। 1936 में भूपेन हजारिका बिष्णु प्रसाद और ज्योति प्रसाद के साथ कोलकाता गए और वहां उन्होंने सेलोना कंपनी के लिए अपना पहला गीत रिकॉर्ड किया। इसके बाद उन्होंने 1939 में अगरवाला की फिल्म इंद्रामालती में अपनी आवाज दी। कम समय में उनकी संगीत और सुरों पर पकड़ उन्हें बहुत प्रसिद्ध बना गई। उनकी आवाज में दर्द, प्रेम, विद्रोह और भावनाओं की गहराई सुनाई देती थी, जिसे लोग बहुत महसूस कर सकते थे।
भूपेन हजारिका कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने गए थे। वहां उन्हें सिर्फ पीएचडी की डिग्री ही नहीं मिली, बल्कि प्रियमवदा पटेल भी मिलीं। दोनों ने 1950 में शादी कर ली। 1952 में उनके बेटे तेज हजारिका का जन्म हुआ। 1953 में भूपेन भारत लौट आए। लेकिन उनके मुश्किल समय में उनकी पत्नी वापस अमेरिका चली गई। भूपेन ने अकेले ही अपने संगीत के सफर को आगे बढ़ाया। भूपेन पर अमेरिकी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता पॉल रॉबेसन का भी गहरा असर पड़ा। पॉल उनके दोस्त बन गए और उन्हें सिखाया कि गिटार सिर्फ संगीत के लिए नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। उस समय पॉल अमेरिका में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे।
भूपेन हजारिका ने अपने गीतों और संगीत से लोगों का दिल जीत लिया। "दिल हूम-हूम करे" जैसे गीत में उन्होंने दर्द और भावनाओं को बहुत खूबसूरती से पेश किया। उन्होंने असमी, बांग्ला और कई अन्य भाषाओं में संगीत दिया और बंगाली संगीत में ट्रेंडसेटर माने गए। "गंगा बहती हो क्यों?" जैसे गीतों ने रिकॉर्ड तोड़े। उन्होंने समाज के अलग-अलग लोगों जैसे किन्नरों, चाय बागानों की महिलाओं और मछुआरों पर भी गीत बनाए। बॉलीवुड से उनका जुड़ाव हेमंत कुमार ने कराया और वे अपने गीत खुद लिखते और गाते थे।
हजारिका ने अपनी जिंदगी संगीत, गायन, अभिनय और फिल्म निर्देशन को समर्पित की। 1975 में उन्हें सर्वोत्कृष्ट क्षेत्रीय फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और 1992 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, 2009 में असोम रत्न और संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, और 2011 में पद्म भूषण जैसी प्रतिष्ठित उपलब्धियाँ भी उनके नाम हैं। समाज के गंभीर मुद्दों को उन्होंने अपनी कला के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया, जिससे वे एक महान गीतकार और सिनेमा के चमकते सितारे बन गए।
30 जून 2011 को भूपेन हजारिका को मुंबई के अस्पताल में भर्ती कराया गया। 5 नवंबर 2011 को ब्रह्मपुत्र के बेटे ने इस दुनिया को अलविदा कहा। उनका अंतिम संस्कार गुवाहाटी यूनिवर्सिटी द्वारा दान दी गई जमीन पर हुआ। लेकिन उनकी आवाज और संगीत हमेशा भारतीय संगीत में गूंजते रहेंगे, जैसे गंगा बिना रुके बहती है।