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सिंगापुर। अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल बाजार में मंगलवार को कीमतें स्थिर बनी रहीं। एशियाई कारोबार के दौरान ब्रेंट और डब्ल्यूटीआई दोनों ही तेल में मामूली बढ़त देखी गई, जबकि इससे एक दिन पहले इनमें तेज उछाल आया था। तेल की कीमतों को सहारा रूस और यूक्रेन के बीच लगातार बने तनाव से मिल रहा है, वहीं निवेशक अमेरिका के तेल भंडार से जुड़े ताजा आंकड़ों का भी आकलन कर रहे हैं। ब्रेंट क्रूड करीब 62 डॉलर प्रति बैरल और अमेरिकी डब्ल्यूटीआई करीब 58 डॉलर प्रति बैरल के आसपास कारोबार करता दिखा। सोमवार को तेल की कीमतों में दो प्रतिशत से ज्यादा की तेजी आई थी। इसकी बड़ी वजह यह रही कि अमेरिका की मध्यस्थता से रूस-यूक्रेन के बीच शांति वार्ता को आगे बढ़ाने की कोशिशों में खास प्रगति नहीं दिखी। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बयान ने हालात को और तनावपूर्ण बना दिया।
ब्लादिमीर पुतिन ने कहा कि यूक्रेन की ओर से कथित ड्रोन हमलों के बाद रूस अपनी बातचीत की रणनीति में बदलाव करेगा। हालांकि यूक्रेन ने इन आरोपों से इनकार किया है, लेकिन इन घटनाओं ने बाजार में यह आशंका बढ़ा दी है कि यह युद्ध जल्द खत्म होने वाला नहीं है और 2026 तक भी खिंच सकता है। भू-राजनीतिक तनाव सिर्फ यूरोप तक सीमित नहीं है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयान ने मध्य पूर्व को लेकर भी चिंता बढ़ा दी है। ट्रंप ने कहा कि अगर ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को दोबारा आगे बढ़ाने की कोशिश करता है, तो अमेरिका फिर से उस पर हमला कर सकता है। मध्य पूर्व दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक क्षेत्रों में से एक है, इसलिए वहां किसी भी तरह का टकराव या अस्थिरता वैश्विक तेल सप्लाई को प्रभावित कर सकती है। इसी आशंका के चलते निवेशक तेल में अपनी पोजिशन बनाए हुए हैं।
दूसरी ओर, सप्लाई के मोर्चे पर अमेरिका से आए आंकड़ों ने तेजी पर कुछ हद तक लगाम लगाई है। अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन के मुताबिक, दिसंबर के तीसरे हफ्ते में अमेरिका के कच्चे तेल के भंडार में करीब 4 लाख बैरल की बढ़ोतरी हुई है, जबकि बाजार को गिरावट की उम्मीद थी। पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधनों का स्टॉक भी बढ़ा है, जिससे यह संकेत मिलता है कि मांग अपेक्षा से कमजोर हो सकती है या रिफाइनरियों का उत्पादन ज्यादा रहा है। कुल मिलाकर, तेल की कीमतें फिलहाल भू-राजनीतिक जोखिम और सप्लाई-डिमांड के आंकड़ों के बीच संतुलन बनाती दिख रही हैं। आने वाले दिनों में निवेशकों की नजर रूस-यूक्रेन युद्ध, मध्य पूर्व की स्थिति, अमेरिका के आर्थिक आंकड़ों और ओपेक प्लस के फैसलों पर रहेगी, जो 2026 की शुरुआत में तेल बाजार की दिशा तय कर सकते हैं।