Mithilesh Yadav
5 Nov 2025
भोपाल। केंन्द्र सरकार द्वारा लागू की गई नई शिक्षा नीति (एनईपी-2020) देश में 34 वर्ष बाद शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार लाने वाला कदम है। मप्र, 2022 से इसे सबसे पहले लागू करने वाला राज्य है। एनईपी की विशेषता यह है कि स्कूलों के 10+2 प्रणाली के स्थान पर 5+3+3+4 मॉडल लागू कर संकायों का बंधन खत्म किया गया है। साथ ही मातृभाषा में शिक्षा पर जोर दिया गया है।
डिजिटल एजुकेशन पर भी फोकस है, ताकि ‘स्वयं’ पोर्टल पर स्टूडेंट खुद आॅनलाइन पढ़कर क्रेडिट हासिल कर सकें। उच्च शिक्षा में भी स्ट्रीम की अनिवार्यता समाप्त कर मल्टीपल एंट्री एवं एक्जिट लागू किया गया। इसमें 2055 तक 50 प्रतिशत सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसमें समग्र मूल्यांकन एवं डिजिटल शिक्षा के साथ कौशल शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण का भी समावेश किया गया है। यानी रटने की जगह समझने पर जोर दिया गया है। इससे न सिर्फ युवाओं को शिक्षा के नए अवसर मिलेंगे, बल्कि रोजगार मिलने में भी आसानी होगी। इस नीति में सिर्फ पढ़ाई नहीं, बल्कि स्किल डेवलपमेंट पर भी जोर दिया गया है।
-पढ़ाई की रूपरेखा 5+3+3+4 फॉर्मूले के आधार पर तैयार
-प्राइमरी स्तर पर शिक्षा में स्थानीय भाषा को जोड़ने पर जोर
-पहली और दूसरी कक्षा में भाषा और गणित पर जोर
-बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में लाइफ स्किल्स को जोड़ा गया
-10वीं-12वीं की बोर्ड परीक्षाएं दो बार आयोजित कर पढ़ाई को आसान बनाया
-संकायों का बंधन खत्म करने से विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े
-डिजिटल एजुकेशन के कारण स्टूडेंट खुद आॅनलाइन पढ़कर क्रेडिट हासिल कर सकते हैं
-नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की तरफ से उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन एंट्रेस एग्जाम
-नई शिक्षा नीति में प्रायमरी स्तर पर पहले पांच साल बच्चों को पढ़ाई संबंधी बोझ से दूर रखा गया है।
-शिक्षक, विद्यार्थियों को ओरल पढ़ाई करवाएंगे। किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी।
-कक्षा 6 से ही बच्चों को वोकेशनल कोर्स पढ़ाए जाएंगे, यानी जिसमें बच्चे कोई स्किल सीख पाएं।
-बच्चों की इंटर्नशिप होगी, चाहे वह कारपेंटर हो, आर्ट्स एंड क्राफ्ट या इलेक्ट्रिक या अन्य कोर्स हों।
-छठी क्लास से ही बच्चों की प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग कराई जाएगी।
-एनईपी के तहत 10+2 के फॉर्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। अभी तक देश में स्कूली पाठ्यक्रम 10+2 प्रणाली पर चलता था।
-अब स्कूली शिक्षा को 3-8, 8-11, 11-14 और 14-18 उम्र के बच्चों के लिए विभाजित किया है।
3-8 यानी दूसरी कक्षा तक एक हिस्सा, 8-11 यानी तीसरी से 5वीं तक दूसरा, 11-14 यानी छठवीं से 8वीं तक तीसरा, 14-18 यानी 9-12वीं तक आखिरी हिस्सा होगा।
-भारत के 14.72 लाख स्कूलों में 24.8 करोड़ छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जिनमें 98 लाख शिक्षक हैं।
-कंप्यूटर वाले स्कूलों का प्रतिशत 2019-20 में 38.5 फीसदी से बढ़कर 2023-2024 में 57.2फीसदी हो गया।
-इंटरनेट सुविधा वाले स्कूलों का प्रतिशत 2019-20 में 22.3 फीसदी से बढ़कर 2023-2024 में 53.9फीसदी हो गया।
-स्कूल छोड़ने की दर में गिरावट आई है। प्राथमिक में 1.9 फीसदी, उच्च प्राथमिक में 5.2 फीसदी और माध्यमिक में 14.1 फीसदी है।
-भारत में कुल उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या बढ़ रही है। इन संस्थानों की संख्या 2014-15 में 51,534 थी, जो कि 2022-23 में 13.8 प्रतिशत बढ़कर 58,643 हो गई है।
भोपाल स्थित एमवीएम के प्राध्यापक नीरज शर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति कई बदलावों के साथ न केवल स्टूडेंट्स को आधुनिक शिक्षा से कदम से कदम मिलाकर चलना सिखा रही है, बल्कि बहुसंकाय शिक्षा का अवसर प्रदान कर रही है। हालांकि टीचर और इंफ्रा की कमी से बहुसंकाय शिक्षा सभी कॉलेजों में उपलब्ध नहीं है। कोर्स की गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिह्न है। मॉडल हा.से. स्कूल, टीटी नगर, भोपाल के शिक्षक नीरज शर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में छात्र अपनी पसंद का विषय चुन सकते हैं। जैसे-गणित को फिजिक्स, इकोनॉमिक्स, कंप्यूटर साइंस और स्टैटिस्टिक्स को जोड़ा गया है। एनईपी ने सीनियर सेकंडरी गणित को सिर्फ एक विषय नहीं, जीवन-कौशल, भविष्य की तकनीकी तैयारी, कॅरियर ओरिएंटेड ज्ञान का माध्यम बना दिया है।
जबकि भोपाल में बीए के छात्र लोकेश तिवारी ने कहा नई शिक्षा नीति ने पढ़ाई को अधिक लचीला और रुचिकर बना दिया है। एलएनसीटी कॉलेज भोपाल से एमबीए कर रहे शिवम जाट ने कहा अब छात्र पसंद के विषय चुन सकते हैं। मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा से समझ गहरी हुई है। परीक्षाओं का तनाव कम हुआ है और मूल्यांकन प्रणाली अधिक व्यावहारिक हो गई है। कौशल आधारित शिक्षा, इंटर्नशिप ने छात्रों को रोजगार योग्य बनाया है। नई शिक्षा नीति सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि छात्रों की सोचने, समझने और कुछ नया करने की क्षमता को बढ़ावा देती है। अब छात्रों को शुरुआती कक्षाओं में मातृभाषा में पढ़ाया जाएगा। एनईपी को केवल लागू ही नहीं किया जाए, बल्कि इसे सही तरीके से समझा और अपनाया भी जाए।