Aakash Waghmare
12 Nov 2025
राजीव कटारे, ग्वालियर। जिस पनीर या मावे को आप चाव से खा रहे हैं, वह आपको बीमार भी कर सकता है। वजह-इसको बनाने की प्रक्रिया बेहद नॉनहाइजिनिक है। कहीं सड़कों के किनारे धूल और वाहनों के जहरीले धुएं के बीच, तो कहीं नालियों के किनारे गंदगी में इसे बनाया जा रहा है। यही पनीर शहर के अलावा प्रदेश के अन्य हिस्सों में सप्लाई होता है। गौर करने वाली बात यह है कि त्योहारों के समय एक्टिव रहने वाले खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अधिकारियों को इन पर कार्रवाई की फुर्सत नहीं है। पीपुल्स समाचार की टीम ने शहर के प्रमुख क्षेत्रों में पनीर बनाने की प्रक्रिया की पड़ताल की, तो बड़ा खुलासा हुआ।
हमारी टीम ने पाया कि अधिकतर जगह प्लास्टिक के ड्रमों में पनीर बन रहा था। यही नहीं, दूध को उबालने के लिए बॉयलर का प्रयोग होना चाहिए, लेकिन उसकी जगह टिन के बर्तनों का उपयोग किया जा रहा था। नाम नहीं छापने की शर्त पर शहर के एक डेयरी संचालक ने बताया कि सामान्य दिनों में रोजाना ग्वालियर में करीब 3 से 4 क्विंटल पनीर की खपत होती है। वहीं दो से ढाई क्विंटल पनीर प्रदेश के अन्य शहरों में भेजा जाता है।
नियम के तहत प्रतिष्ठानों को हाइजीन के साथ पनीर बनाने के लिए मशीन का उपयोग करना चाहिए। यह मशीन मार्केट में क्षमता के हिसाब से 25 हजार रुपए से लेकर 5 लाख रुपए तक में आती है। शहर में अधिकतर डेयरी संचालक मशीन की जगह अब भी पुराने तरीके से पनीर बना रहे हैं।
शहर के बीचो-बीच इस इलाके में पांच दुकानें हैं, जहां पनीर बनाया जाता है। अधिकतर जगह गंदगी के बीच सड़क पर प्लास्टिक के ड्रमों में पनीर बन रहा था। एक दुकान में रोड किनारे खुले में पनीर बनाया जा रहा था। पास में नाली की गंदगी पसरी थी और गाड़ियां आ-जा रही थीं। कर्मचारी हाथों में ग्लब्स तक नहीं पहने थे। ड्रमों में कपड़ा लगाकर दूध छानने का काम किया जा रहा था।
इस इलाके में मुख्य रोड पर ही तीन दुकानें हैं, जहां गंदगी के बीच पनीर बनता मिला। एक गोदाम में बॉयलर नहीं, बल्कि टीन के बर्तन में दूध गर्म किया जा रहा था। यहीं पास में रखे प्लास्टिक के ड्रम में गर्म दूध को रखा गया था। एक अन्य दुकान के बाहर कीचड़ फैला था। इसी कीचड़ से होकर लोग दुकान में पहुंचकर पनीर खरीद रहे थे।
यहां एक डेयरी के गोदाम में पनीर बनाने की प्रक्रिया चल रही थी। यहां दूध को गर्म करने के लिए बॉयलर का उपयोग किया जा रहा था। पुराने छत्री बाजार के सामने दुकान पर सफाई की व्यवस्था संतोषजनक मिली, लेकिन कर्मचारी ड्रेस और हाथों में ग्लब्स नहीं पहने थे। एक अन्य दुकान पर गंदगी के बीच पनीर बनाया जा रहा था।
दूध डेयरी व्यवसायी संघ ग्वालियर में 450 डेयरियां रजिस्टर्ड हैं, लेकिन शादी एवं त्योहारों में मांग बढ़ने पर 70 प्रतिशत पनीर मुरैना से आता है। डेयरी वाले फैक्ट्रियों से करीब 230-250 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक डेयरी संचालक ने बताया कि फैक्ट्रियों में सप्रेटा दूध से बने पनीर में क्रीम की जगह आॅयल का उपयोग किया जाता है। यही बाजार में 300-360 रुपए में बेचा जाता है। शादियों एवं त्योहारी सीजन में इसकी सप्लाई इंदौर, भोपाल, ब्यावरा, झांसी आदि में की जाती है।
डेयरी संचालकों के अनुसार, एक किलो दूध से करीब 180 से 250 ग्राम तक पनीर बनता है, जो दूध की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। गाय के दूध से औसतन 150-200 ग्राम और भैंस के दूध से 200-250 ग्राम पनीर मिलता है।
इस बारे में बात करने पर खाद्य सुरक्षा अधिकारी लोकेंद्र सिंह का कहना है कि हमारी टीम ने दीपावली से पहले कुछ डेयरियों पर कार्रवाई की थी। नियमों का पालन नहीं करने वाले खाद्य प्रतिष्ठानों के खिलाफ जल्द ही कार्रवाई की जाएगी।
गलत ढंग से बनाए जाने वाले पनीर के इस्तेमाल के बारे में डॉ. मनीष शर्मा का कहना है कि प्लास्टिक के टैंक में गर्म दूध डालने से रिएक्शन होता है। इसके साथ ही दवाई युक्त दूध से बने पनीर के उपयोग से लिवर, कैंसर और हड्डियां कमजोर होने के साथ ही किडनी भी डैमेज हो सकती है।