Aniruddh Singh
9 Sep 2025
अनुज मैना
भोपाल। बचपन से ही मैं सांस्कृतिक कार्यक्रमों, गायन और रंगमंच से जुड़ी रही। स्कूल और कॉलेज के दिनों में हमेशा थिएटर करती थी। अरुण पाण्डेय जैसे निर्देशकों के साथ मैंने बहुत काम किया। इसके बाद मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) में एडमिशन लिया। एनएसडी में दाखिला मिलने के बाद मेरे सामने नई दिशाएं खुलीं और सीखने के ढेरों अवसर मिले। यह बात ‘ड्रीम गर्ल’ और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाली फिल्म ‘कटहल’ में नजर आ चुकीं एक्ट्रेस नेहा सराफ ने कही। वे रवींद्र भवन में आयोजित बुंदेली समागम कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आई थीं। नेहा ने बताया कि थिएटर उनका पहला प्यार है और उसी से असली संतोष मिलता है।
नेहा कहती हैं कि जबलपुर की मिट्टी में ही कला है। वहां का सांस्कृतिक माहौल और थिएटर की परंपरा कलाकारों को निखारती है। यही वजह है कि जबलपुर से इतने नामी कलाकार निकले। उन्होंने बताया कि मैं अभी दो नए नाटक कर रही हूं। इनमें से एक शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक ‘ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम’ का हिंदी रूपांतरण है। इसके अलावा रितेश देशमुख के साथ नजर आऊंगी।
नेहा ने कहा, फिल्म ‘कटहल’ यह महिला केंद्रित फिल्म थी और मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत प्रभावित किया। क्योंकि हर महिला में एक मां का स्वरूप होता है, चाहे वह बाहर काम कर रही हो या घर संभाल रही हो। जब राइटर ने कहा कि यह किरदार उन्होंने खासतौर पर मेरे लिए लिखा है, तो यह मेरे लिए गर्व और खुशी का पल था।
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पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय छतरपुर से की। घर की आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि फॉर्म भरने और वर्कशॉप में हिस्सा लेने के लिए पैसों की तंगी झेलनी पड़ी। फिर छतरपुर में कई वर्कशॉप कीं। इसके बाद रंगकर्म की पढ़ाई के लिए घर से भागकर ग्वालियर पहुंचा, क्योंकि पापा थिएटर की पढ़ाई के लिए अलाउ नहीं करते। ग्वालियर में राजा मानसिंह तोमर विवि में यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। शुरुआत में पापा बहुत नाराज थे, अब वह भी मुझे सपोर्ट करते हैं। ये बात फिल्म ‘लापता लेडीज’ में नजर आ चुके एक्टर प्रांजल पटेरिया ने कहीं। उन्होंने कहा कि जब ‘लापता लेडीज’ में काम के बारे में घरवालों को पहले तो समझ ही नहीं आया यह कैसा काम है। उन्हें सिर्फ इतना पता था कि बेटा आमिर खान प्रोडक्शन के साथ काम कर रहा है।
थिएटर से मिली असली सीख : प्रांजल कहते हैं कि थिएटर लाइव माध्यम है। वहां आप गलती करें तो दोबारा मौका नहीं मिलता, जबकि फिल्मों में रीटेक संभव है। हिंदी थिएटर में पैसा नहीं है। अगर वहां भी अच्छा पैसा होता तो शायद बहुत से कलाकार फिल्मों में जाते ही नहीं। घर चलाने की भी जिम्मेदारी होती है, लेकिन मैं आज भी मानता हूं कि मैंने असली सबक थिएटर में सीखे हैं। हाल ही में आई तेलुगू फिल्म ‘हिट-3’ में मैंने साउथ सुपरस्टार नानी के साथ काम किया था। अमेजन प्राइम पर सीरीज ‘मटका किंग’ में भी नजर आऊंगा।
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सांसारिक जीवन त्याग कर चुके भिंड के ब्रह्मरूपीजी महाराज ने संवाद सत्र में कहा हम जीवन के मोमेंट्स में इतना खो जाते हैं कि जीवन के सार पर गौर नहीं कर पाते। नारायण श्री कृष्ण और महावीर स्वामी ने हमेशा आत्मरमण की बात की, चमत्कार की नहीं की। मरने के बाद शरीर की राख बर्तन मांजने के काम भी नहीं आती, लकड़ी की फिर भी काम आ जाती है। उस चीज को बचाना चाहते हैं, जो नहीं बचेगी। परंपराओं को सुरक्षित करने के चक्कर में प्रेम खोते जा रहे हैं। नारायण श्रीकृष्ण ने कहा कि प्रारब्ध से वो सब प्राप्त होता है, जो किया हुआ कर्म है। पुरुषार्थ, एक-एक भावना, संकल्प प्रारब्ध निर्मित करता है, जिससे आगे बढ़ सकते हैं। मंदिर या किसी तीर्थस्थल पर जाते हैं, तो वहां लाइन में लगकर परेशान होते हैं, किसी महाराज के दर्शन नहीं हो पाते तो दुखी होते हैं। सुख की तलाश में जाकर भी दुख साथ लाते हैं।