मुंबई। महाराष्ट्र में गुइलैन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। अब तक 225 संदिग्ध केस सामने आ चुके हैं, जिनमें से 197 की पुष्टि हुई है। इस बीमारी से अब तक 12 लोगों की मौत हुई है। जिसमें 6 की पुष्टि हो चुकी है और 6 की मौत संदिग्ध मानी जा रही है।
GBS से प्रभावित 179 मरीज अब तक ठीक हो चुके हैं और उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। फिलहाल 24 मरीजों का इलाज चल रहा है, जिनमें से 15 की हालत गंभीर है और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया है।
संक्रमित पानी से जुड़ा खतरा
बीमारी के कारणों की जांच के लिए प्रशासन ने पुणे नगर निगम, पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम, पुणे ग्रामीण और अन्य प्रभावित क्षेत्रों से 7262 पानी के सैंपल इकट्ठा किए। इनमें से 144 जल स्रोतों में संक्रमण की पुष्टि हुई है, जिससे पानी के कारण संक्रमण फैलने की आशंका जताई जा रही है। इसके अलावा, निजी क्लीनिक और अस्पतालों को निर्देश दिया गया है कि GBS के कोई भी नए मामले सामने आने पर तुरंत रिपोर्ट करें।
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) क्या है ?
GBS एक ऑटोइम्यून न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें इम्यून सिस्टम अपनी ही नर्व्स पर हमला करता है। यह एक रेयर सिंड्रोम है।
यह बीमारी पेरिफेरल नर्वस सिस्टम (शरीर की अन्य नर्व्स) को प्रभावित करती है, जिससे मांसपेशियों तक सिग्नल पहुंचने में दिक्कत होती है।
इसके कारण रोगी को उठने-बैठने, चलने और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। कुछ मामलों में लकवा भी हो सकता है।
यह बीमारी आमतौर पर किसी बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण के बाद होती है। पुणे में E. कोली बैक्टीरिया का स्तर अधिक पाया गया है।
हर साल पूरी दुनिया में इलके लगभग एक लाख से ज्यादा केस सामने आते हैं, जिनमें ज्यादातर मरीज पुरुष होते हैं।
ये बीमारी आमतौर पर मेडिसिन से ठीक हो जाती है। मरीज 2-3 हफ्तों में बिना किसी सपोर्ट के चलने लगता है। हालांकि, कुछ मामलों में मरीज के ठीक होने के बाद भी उसके शरीर में कमजोरी बनी रहती है।
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के शुरुआती लक्षण:
हाथों-पैरों में झुनझुनी और कमजोरी महसूस होना।
पैर में कमजोरी और चलने-फिरने में समस्या, जैसे सीढ़ियां चढ़ने में कठिनाई।
बोलने, चबाने या खाना निगलने में परेशानी।
डबल विजन या आंखों को हिलाने में कठिनाई।
खासकर मांसपेशियों में तेज दर्द होना।
पेशाब और मल त्याग में समस्या होना।
सांस लेने में परेशानी होना।
अगर इन लक्षणों को नजरअंदाज किया जाए, तो यह बीमारी तेजी से बढ़ सकती है और लकवा (पैरालिसिस) का कारण बन सकती है। यह स्थिति दो हफ्ते के भीतर गंभीर हो सकती है, इसलिए लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।