Shivani Gupta
25 Oct 2025
Manisha Dhanwani
25 Oct 2025
Manisha Dhanwani
25 Oct 2025
नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई और दिल्ली दुनिया के शीर्ष 150 विश्वविद्यालयों में शामिल हैं, जबकि मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) ने 13वीं बार वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय का स्थान बरकरार रखा है। बुधवार को जारी हुई क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग, 2025 में यह जानकारी दी गई। आईआईटी मुंबई पिछले साल के 149वें स्थान से 31 रैंक ऊपर चढ़कर 118वें स्थान पर पहुंच गया है, वहीं, आईआईटी दिल्ली ने अपनी रैंकिंग में 47 अंकों का सुधार करते हुए वैश्विक स्तर पर 150वां स्थान हासिल किया है। लंदन आधारित उच्च शिक्षा विश्लेषक, क्वाक्वेरेली साइमंड्स (क्यूएस) द्वारा प्रकाशित प्रतिष्ठित रैंकिंग के अनुसार, दिल्ली विश्वविद्यालय की अपने स्नातकों की रोजगार क्षमता के मामले में स्थिति अच्छी है और यह रोजगार परिणामों की श्रेणी में विश्व स्तर पर 44 वें स्थान पर है।
रैंकिंग के इस संस्करण में 46 विश्वविद्यालयों को शामिल किए जाने के साथ भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली प्रतिनिधित्व के मामले में वैश्विक स्तर पर सातवें और एशिया में तीसरे स्थान पर है, जो केवल जापान (49 विश्वविद्यालय) और चीन (मुख्यभूमि) (71 विश्वविद्यालय) से पीछे है। वहीं, दुनिया के शीर्ष 400 संस्थानों में दो और प्रविष्टियां हैं।
क्यूएस ने इस बात को रेखांकित किया कि उपलब्धियों के बावजूद भारत को अंतर्राष्ट्रीयकरण में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसने कहा, देश अंतर्राष्ट्रीय संकाय अनुपात और अंतर्राष्ट्रीय छात्र अनुपात संकेतकों में पीछे है, जो अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं आदान-प्रदान की आवश्यकता को रेखांकित करता है। अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के अनुपात के लिए भारत का आंकड़ा मात्र 2.9 है, जो वैश्विक औसत 26.5 से काफी कम है। अधिकारी ने कहा, इसी प्रकार, अंतर्राष्ट्रीय संकाय के अनुपात का औसत आंकड़ा 9.3 है, जो भारतीय विश्वविद्यालयों में अंतर्राष्ट्रीय संकाय सदस्यों की विविधता और प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की आवश्यकता को दर्शाता है।
रोजगार : भारत का रोजगार संबंधी आंकड़ा 23.8 के वैश्विक औसत से 10 अंक कम है, जो नौकरी की आवश्यकताओं और स्नातकों के कौशल के बीच अंतर को पाटने तथा नए स्नातकों के लिए अधिक अवसर पैदा करने की आवश्यकता को दर्शाता है।
स्थिरता : भारत का स्थिरता अंक भी वैश्विक औसत से लगभग 10 अंक कम है और यह उच्च शिक्षा प्रणाली के भीतर स्थिरता पहल को प्राथमिकता देने एवं इसे मजबूत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।