Naresh Bhagoria
23 Nov 2025
भोपाल। मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के सहयोग से एक भव्य सांस्कृतिक आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन दो हिस्सों में होगा। हरिहर राष्ट्रीय नाट्य समारोह, 24 से 29 जुलाई तक चलेगा और नाट्यशास्त्र पर केंद्रित भरतमुनि राष्ट्रीय संगोष्ठी, 25 से 28 जुलाई तक आयोजित की जाएगी। इस आयोजन का उद्देश्य प्रकृति, संस्कृति और भारतीय नाट्य परंपरा के प्रति आभार व्यक्त करना है।
इस आयोजन की शुरुआत 24 जुलाई को हरियाली अमावस्या के पावन अवसर पर होगी। यह दिन प्रकृति और मानव जीवन के बीच सामंजस्य का प्रतीक है और समारोह का मूल भाव भी इसी से जुड़ा है। आयोजन स्थल रवींद्र भवन, भोपाल का हंसध्वनि, अंजनी और गौरांजनी सभागार रहेगा, जहां नाटक, वक्तव्य और संगोष्ठी के सत्र आयोजित होंगे।
जनजातीय संग्रहालय, भोपाल में आयोजित एक प्रेस वार्ता में संस्कृति मंत्री धर्मेन्द्र सिंह लोधी ने बताया कि यह आयोजन केवल रंगमंच का उत्सव नहीं है, बल्कि यह कला, आध्यात्मिकता, और सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक भी है। उन्होंने इसे विचारों और अभिव्यक्ति की एकता बताया। साथ ही बताया कि श्रावण मास में हरियाली का यह उत्सव हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होने और उसके साथ संतुलन स्थापित करने की प्रेरणा देता है।
संस्कृति मंत्री ने यह भी बताया कि नाट्यशास्त्र पर केंद्रित भरतमुनि राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्देश्य केवल विचार-विमर्श नहीं है, बल्कि एक स्थायी सांस्कृतिक दस्तावेज तैयार करना है। संगोष्ठी में वरिष्ठ रंगकर्मी, विशेषज्ञ और शोधार्थी हिस्सा लेंगे। उनके वक्तव्यों और शोध पत्रों को दस्तावेज के रूप में संरक्षित किया जाएगा ताकि आने वाली पीढ़ियों को नाट्य के क्षेत्र में संदर्भ सामग्री उपलब्ध हो सके।

इस संगोष्ठी में देश के 15 से अधिक प्रमुख विश्वविद्यालयों और अकादमियों के शोधार्थी व विद्यार्थी हिस्सा ले रहे हैं। इनमें राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, भारतेन्दु नाट्य अकादमी, पंजाब विश्वविद्यालय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय, राजा मानसिंह तोमर विश्वविद्यालय, जम्मू विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय, डी.वाई. पाटिल विद्यापीठ और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख संस्थान शामिल हैं।
समारोह में आठ लोकप्रिय नाटकों की प्रस्तुति होगी, जिनका चयन भारतीय संस्कृति, जीवन दर्शन, प्रकृति और मानवीय संबंधों को केंद्र में रखकर किया गया है। नाट्य विद्यालय के रंगमंडल द्वारा प्रस्तुत समुद्र मंथन से समारोह की शुरुआत होगी। यह नाटक सुविख्यात अभिनेता एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक चित्तरंजन त्रिपाठी के निर्देशन में तैयार किया गया है।
इसके बाद वामन केंद्रे निर्देशित “मोहे पिया”, डॉ. पुरु दाधीच निर्देशित “सुवसंतक”, डॉ. संगीता गुंदेचा का “नाट्योत्पत्ति कथा”, सतीश दवे का “विश्वामित्र”, स्वप्नकल्पा दास गुप्ता का “हर्षिता”, डॉ. संध्या पुरेचा का “शीला… अंतरात्मा का स्वरूप” और अंत में “चरैवेति” नाटक का मंचन होगा। यह अंतिम प्रस्तुति जनजातीय लोककला एवं बोली विकास अकादमी की मूल प्रस्तुति होगी जिसे रंग उत्सव समिति, रीवा के कलाकार प्रस्तुत करेंगे।
भरतमुनि द्वारा 2000 वर्ष पूर्व रचित नाट्यशास्त्र केवल एक ग्रंथ नहीं बल्कि भारतीय रंगकला का जीवंत दस्तावेज है। इस संगोष्ठी में इसे समकालीन दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया जाएगा। चार दिनों में देशभर से आए विद्वान नाट्यशास्त्र के विभिन्न पहलुओं पर वक्तव्य देंगे। इनमें अभिनय, रस, नायिका भेद, पूर्वरंग विधान, लोकनाट्य, वास्तुशास्त्र, आधुनिक रंगमंच और आंगिक अभिनय जैसे विषय शामिल हैं।
यह आयोजन नाट्य प्रेमियों के लिए एक अवसर है नाट्यशास्त्र के गूढ़ दर्शन, उसके व्यवहारिक पक्ष, संगीत और आधुनिक रंगमंच के संबंधों को समझने का। यह शास्त्र और समकालीन रंगमंच के बीच एक संवाद की तरह है जो परंपरा को वर्तमान से जोड़ता है।
इस अवसर पर वीर भारत न्यास की ओर से दो विशेष चित्र प्रदर्शनियां भी आयोजित की जा रही हैं। “बघेश्वर” प्रदर्शनी सिंह की पारंपरिक महिमा को रेखांकित करती है, जबकि “मणिधर” प्रदर्शनी नाग की सांस्कृतिक छवियों को दर्शाती है। यह प्रदर्शनियां 24 से 29 जुलाई तक रवींद्र भवन परिसर में दर्शकों के लिए खुली रहेंगी।