Manisha Dhanwani
25 Nov 2025
Shivani Gupta
24 Nov 2025
Mithilesh Yadav
24 Nov 2025
Aakash Waghmare
24 Nov 2025
इंदौर – शहर में किन्नर के भेष में चल रही जबरन वसूली की वारदातों ने एक बार फिर कानून-व्यवस्था को खुली चुनौती दे दी है। एरोड्रम थाना क्षेत्र में तीन दिन पहले हुई घटना में धार पासिंग सफेद कार से आए तीन संदिग्ध व्यक्तियों ने खुद को किन्नर बताकर एक परिवार से 31,000 रुपए ठग लिए। धमकी, दबाव और दहशत—सबकुछ इस अंदाज में कि पीड़ित परिवार पुलिस तक पहुंचा जरूर, लेकिन डर के चलते रिपोर्ट लिखाने से पीछे हट गया। पुलिस ने तीनों को हिरासत में लेकर पूछताछ की, लेकिन एफआईआर न होने के चलते मजबूरी में छोड़ना पड़ा। हैरानी की बात यह है कि तीनों आरोपी महू के रहने वाले पुरुष निकले, जो खुद को किन्नर बनकर शहर में घूम रहे थे। ये आरोपी किसी नाथ समुदाय से जुड़े हैं और “मांगने” का काम करने की आड़ में वसूली का खेल चलाते रहे।
किन्नर बनकर ठगी का बढ़ता गिरोह—
इंदौर में पिछले कई महीनों से असली और नकली किन्नरों के बीच की जंग पहले ही प्रशासन की नींद हराम कर चुकी है। तीन दिन पहले पकड़े गए नकली किन्नर और 31 हजार की ठगी ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि शहर में किन्नर पहचान की आधिकारिक प्रक्रिया ठप होने के कारण अपराधी इस समुदाय की पहचान का खुला दुरुपयोग कर रहे हैं।
पहचान प्रक्रिया ठप, अपराधी बेखौफ-
जिला प्रशासन की ओर से किन्नरों की पहचान सुनिश्चित करने और उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़ने के लिए शुरू की गई आधिकारिक पहचान पत्र (ID) प्रक्रिया महीनों से बंद पड़ी है।पूरे इंदौर में आज तक सिर्फ 130 किन्नर ही रजिस्टर्ड हैं,जबकि वास्तविक संख्या हजारों में बताई जाती है।और यह आंकड़ा भी पिछले वर्ष का है—यानि एक साल से कोई प्रगति नहीं।
दो बड़े किन्नर समूहों का विवाद—समुदाय में फूट, अपराधियों को मौका
कुछ समय पहले किन्नरों के दो बड़े समूहों के बीच हुए विवाद के बाद प्रशासन ने साफ निर्देश जारी किए थे कि आधिकारिक पहचान जरूरी है, ताकि अपराधी समुदाय का नाम लेकर अवैध वसूली न कर सकें। लेकिन स्थिति यह है कि स्पष्ट निर्देशों के बाद भी एक भी नया आवेदन नहीं आया,ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया होने के बावजूद कोई भी आगे नहीं बढ़ रहा, जबकि शहर में रोजाना अवैध वसूली की शिकायतें मिल रही हैं।
डेरों से भी नहीं आया एक भी आवेदन
नंदलालपुरा और एमआर-10 के बड़े डेरों से भी आज तक एक भी आवेदन नहीं आया। पूर्व में चलाए गए विशेष अभियान में भी बहुत कम संख्या सामने आई थी। बार-बार अपील, जागरूकता कार्यक्रम, अधिकारियों की कोशिशें—सब बेअसर।