Naresh Bhagoria
15 Nov 2025
संदीप मिश्रा, डिंडौरी। जिले के सहजपुरी गांव में रहने वाले भगवानदीन धुर्वे आज उस जज्बे का नाम हैं, जिसने सीमाओं को ताकत में बदल दिया। जन्म से ही उनके दोनों हाथ और पैर नहीं हैं, लेकिन उन्होंने कभी अपनी शारीरिक कमी को कमजोरी नहीं बनने दिया। वर्ष 2013 में उन्होंने सहजपुरी प्राथमिक विद्यालय में अतिथि शिक्षक के रूप में अपनी सेवा शुरू की। शुरुआत में लोगों को विश्वास नहीं था कि वे बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे, पर कुछ ही समय में भगवानदीन ने अपने कर्म और आत्मविश्वास से सबका दिल जीत लिया। वे कलम को दोनों हाथों की कलाई से पकड़कर लिखते हैं, पाठ पढ़ाते हैं और हर बच्चे को सिखाते हैं कि, उनका कहना है कि, हार केवल वही मानता है जो कोशिश छोड़ देता है।
उनके छात्र नवीन, शिवा, संगीता, आकांक्षा आदि कहते हैं कि 'सर' न सिर्फ किताबों का ज्ञान देते हैं, बल्कि जीवन की दिशा भी दिखाते हैं। वे बच्चों को समझाते हैं कि संघर्ष से डरना नहीं चाहिए, क्योंकि कठिनाइयां ही इंसान को मजबूत बनाती हैं। उनके पढ़ाने का तरीका इतना सरल और भावनात्मक है कि बच्चे खुद-ब-खुद प्रेरित हो जाते हैं। सहजपुरी गांव के बच्चे कहते हैं, 'अगर सर कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं।'
बिसाहू लाल, रमेश, सोहन सहित गांव के लोग भगवानदीन को 'चलता-फिरता साहस' कहते हैं। वे अपने सारे काम खुद करते हैं, चाहे कपड़े पहनना हो, खाना खाना या मोबाइल चलाना। आत्मनिर्भरता उनके जीवन का सबसे बड़ा पाठ है। जब भी कोई ग्रामीण निराश होता है, भगवानदीन की कहानी उसे फिर से उम्मीद देती है।
शिक्षक भगवानदीन परस्ते का कहना है कि शिक्षक का काम सिर्फ पढ़ाना नहीं, बल्कि मनुष्य में विश्वास जगाना है। शरीर नहीं, सोच अगर मजबूत हो तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता।
2 फरवरी 1974 को जन्मे भगवानदीन बताते हैं कि, उनके पिता का सन 2000 में तथा माता का देहांत इसी वर्ष डेढ़ माह पूर्व हो चुका है। पांच भाई और चार बहनों में भगवानदीन सबसे छोटे हैं। फिलहाल सभी भाई और बहन विवाह के बाद अपने परिवार के साथ अलग रहते हैं। भगवानदीन का विवाह 2012 में कलाबाई धुर्वे के साथ हुआ और उनकी दो 13 व 10 वर्ष की दो बेटियां हैं। पीएम आवास योजना के तहत कलाबाई धुर्वे को घर की सुविधा मिली हुई है, जिसमें भगवानदीन परिवार सहित निवास करते हैं।