नई दिल्ली। 8 नवंबर 2016 की वो रात… घड़ी में जैसे ही 8 बजे टीवी स्क्रीन पर एक ऐसा ऐलान हुआ जिसने पूरे देश की धड़कनें तेज कर दीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे और कुछ ही पलों बाद ऐसा फैसला सामने आया जिसने करोड़ों भारतीयों की जेब, जिंदगी और लेनदेन की पूरी आदतें बदल दीं। उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि, आधी रात से 500 और 1000 रुपए के नोट वैध नहीं रहेंगे। लोग उस वक्त यह समझ भी नहीं पाए थे कि अगले ही दिन से उनके हाथों का पैसा ‘सिर्फ कागज’ बन जाने वाला है। एटीएम से लेकर बैंकों तक, शहरों से लेकर गांवों तक… हर जगह हलचल, चिंता और अनिश्चितता फैल गई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, यह भारत की पहली नोटबंदी नहीं थी। इससे पहले भी दो बार सरकारें इसी तरह काले धन पर वार कर चुकी थीं।
नोटबंदी लागू करने के पीछे कुछ प्रमुख आर्थिक और सुरक्षा से जुड़े उद्देश्य बताए गए-
सरकार का मानना था कि, बड़ी मात्रा में जो पैसा गैरकानूनी रूप से सिस्टम से बाहर रखा जाता है। वह अचानक बेकार हो जाएगा, इससे भ्रष्टाचार और अपराध दोनों पर प्रभाव पड़ेगा।
4 जनवरी 1946 को ब्रिटिश सरकार ने पहली बार उच्च मूल्य वाले नोटों पर प्रतिबंध लगाया।
कौन से नोट बंद हुए: ₹500, ₹1000 और ₹10,000
उद्देश्य: छिपे हुए अवैध धन का पता लगाना
हालांकि, उस समय बड़े नोटों का उपयोग बहुत कम लोग करते थे। आम जनता की आमदनी सीमित थी। इसलिए इस नोटबंदी का प्रभाव बहुत सीमित रहा और काले धन को खत्म करने का लक्ष्य बहुत हद तक पूरा नहीं हो पाया।
आजादी के तीस साल बाद 16 जनवरी 1978 को जनता पार्टी की सरकार ने फिर से बड़े नोटों को चलन से बाहर कर दिया।
कौन से नोट बंद हुए: ₹1000, ₹5000 और ₹10,000
इस फैसले का असर इस बार भी बड़े कारोबारियों और धनी वर्ग तक सीमित रहा। ग्रामीण और मजदूर वर्ग ज्यादातर छोटे नोटों में लेनदेन करते थे, इसलिए उनके जीवन पर इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा।
8 नवंबर 2016 की रात हुए इस बड़े ऐलान ने देशभर में अचानक आर्थिक गतिविधि की रफ्तार बदल दी।
कौन से नोट बंद हुए: ₹500 और ₹1000
लेकिन इसके साथ एक बड़ा परिवर्तन भी शुरू हुआ। इसका बड़ा असर डिजिटल इंडिया पर पड़ा। डिजिटल पेमेंट, यूपीआई और कैशलेस ट्रांजैक्शन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई। नोटबंदी सिर्फ एक आर्थिक फैसला नहीं, बल्कि हमारी वित्तीय सोच में बड़ा बदलाव थी।
एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में बंद हुए लगभग 99% नोट बैंकों में वापस जमा हो गए। इसका मतलब है कि, जितना काला धन नकदी के रूप में पकड़े जाने की उम्मीद थी, वह लक्ष्य पूरी तरह से हासिल नहीं हो सका। लेकिन इस फैसले के पॉजिटिव प्रभाव भी दिखाई दिए-