Manisha Dhanwani
28 Oct 2025
भोपाल/उज्जैन। लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ का समापन 28 अक्टूबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ हुआ। देशभर के घाटों पर सुबह-सुबह श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिली। महिलाएं कमर तक जल में खड़ी होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करती नजर आईं। इसके साथ ही 36 घंटे का निर्जला उपवास भी खत्म हुआ। उज्जैन में बिहार से आए श्रद्धालुओं के साथ मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी विक्रम सरोवर पर सूर्य देव को अर्घ्य दिया और प्रदेश की सुख-समृद्धि की कामना की।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन के विक्रम सरोवर पर पारंपरिक तरीके से छठ पूजा में शामिल हुए। उन्होंने सूर्य को अर्घ्य देकर प्रदेश और देश की सुख-शांति की प्रार्थना की। इस दौरान सीएम यादव ने श्रद्धालुओं से मुलाकात कर उन्हें छठ पर्व की बधाई दी। उन्होंने कहा कि, हमारे पर्व और त्यौहार हमारी सनातन संस्कृति की जड़ों को मजबूत करते हैं। छठ मैया और सूर्य उपासना हमारी परंपराओं में अटूट आस्था का प्रतीक हैं।
इस साल छठ महापर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर को ‘नहाय-खाय’ के साथ हुई थी। 26 अक्टूबर को खरना का आयोजन हुआ, जिसमें व्रती महिलाओं ने गुड़ और चावल की खीर बनाकर पूजा की। 27 अक्टूबर की शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया गया और 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ यह पर्व संपन्न हुआ। पर्व के दौरान महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखकर परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं।
उज्जैन के विक्रम सरोवर और रामघाट पर हजारों श्रद्धालु सुबह-सुबह जुटे। हाथों में बांस के सूप, फल, ठेकुआ और गन्ना लिए महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में पूजा करती दिखीं। पूरा वातावरण छठी मईया के जयकारों और मंगल गीतों से गूंज उठा।
छठ पूजा में अर्पित किए जाने वाले प्रसाद का धार्मिक महत्व होता है-
केला: भगवान विष्णु का प्रिय फल, समृद्धि का प्रतीक।
डाभ (नींबू): छठी मैया को अति प्रिय फल।
नारियल: शुद्धता और शुभता का प्रतीक।
गन्ना: छठी मैया को समर्पित, घर में सुख-समृद्धि लाता है।
ठेकुआ: गेहूं के आटे, घी और गुड़ से बना पौष्टिक पारंपरिक प्रसाद।
छठ महापर्व में तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाती है। व्रती महिलाएं जल में खड़े होकर सूप में फल, गन्ना, चावल के लड्डू और ठेकुआ रखकर सूर्य को अर्पित करती हैं। चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन होता है। इसी के साथ व्रतियों का निर्जला उपवास समाप्त होता है और वे प्रसाद ग्रहण कर पारण करती हैं।
अर्घ्य देने के बाद व्रती घर लौटकर श्रद्धापूर्वक पारण करते हैं। परंपरा के अनुसार व्रत का समापन कच्चे दूध का शरबत, ठेकुआ या गुड़-चावल की खीर से किया जाता है। महिलाएं दीप प्रज्वलित कर छठी मैया का आभार व्यक्त करती हैं और परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करती हैं।
छठ सिर्फ धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और अनुशासन का प्रतीक भी है। रांची से लेकर पटना, गोरखपुर से दिल्ली और अब उज्जैन तक हर घाट पर एक ही भाव दिखाई दिया- सूर्य देवता और छठी मईया में अटूट आस्था।