Manisha Dhanwani
8 Sep 2025
Manisha Dhanwani
7 Sep 2025
नई दिल्ली। पिछले चार-पांच साल से भारत के पड़ोसी देश लगातार राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता की चपेट में हैं। अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा, श्रीलंका में आर्थिक संकट के खिलाफ बवाल, बांग्लादेश में छात्र आंदोलन और नेपाल में सोशल मीडिया बैन के विरोध में हो रहे प्रोटेस्ट इसका जीवंत उदाहरण हैं। इन घटनाओं में अब नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का इस्तीफा भी शामिल हो गया है।
देशव्यापी प्रदर्शन, संसद और सुप्रीम कोर्ट पर कब्जा, मंत्रियों के घरों में आगजनी और राष्ट्रपति के आवास पर हमले की घटनाएं पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इन पड़ोसी देशों में अस्थिरता की गहराई कितनी है और इसके पीछे क्या कारण हैं।
नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ युवा पीढ़ी की ओर से शुरू हुआ Gen-Z प्रोटेस्ट ने तेजी पकड़ ली थी। विरोध प्रदर्शन केवल सोशल मीडिया प्रतिबंध तक सीमित न रहकर व्यापक राजनीतिक संकट में बदल गया। राजधानी काठमांडू समेत नेपाल के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शनकारी संसद भवन से लेकर सुप्रीम कोर्ट पर कब्जा कर चुके हैं। सरकार में शामिल गृह, कृषि, स्वास्थ्य मंत्री समेत पांच अन्य मंत्री अपना इस्तीफा दे चुके हैं।
विपक्षी दलों के 20 से अधिक सांसद भी सामूहिक इस्तीफा देकर सत्ताधारी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर चुके हैं। विपक्ष की मांग है कि संसद भंग करके नए चुनाव कराए जाएं। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने पद से इस्तीफा दिया लेकिन प्रदर्शनकारियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के निजी आवास तक में प्रदर्शनकारियों ने आगजनी की।
नेपाल की स्थिति की तरह ही अफगानिस्तान में भी हालात बेहद भयावह बने थे। अमेरिका समर्थित अशरफ गनी की सरकार का पतन हो गया था और अगस्त 2021 में तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया। अमेरिकी दूतावास से लोगों को निकालते समय भगदड़ मची और करीब 170 लोगों की जान चली गई थी। इसके बाद तालिबान ने देश में अपना कड़ा शासन स्थापित किया। महिलाओं के अधिकार सीमित हो गए और आतंकवाद का खतरा बढ़ा। आर्थिक संकट के बावजूद तालिबान का शासन अब भी कायम है।
अगस्त 2022 में श्रीलंका में बड़े पैमाने पर जनआंदोलन भड़क उठा। देश की खराब होती आर्थिक हालत के कारण, ईंधन और दवाओं की भारी किल्लत ने लोगों को सड़क पर उतार दिया। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को मजबूरन देश छोड़ना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन और संसद पर कब्जा कर, पूल में तैराकी तक कर डाली थी। कोरोना महामारी से पर्यटन उद्योग ठप हो गया था और विदेशी कर्ज का बोझ बढ़ता गया था। देश में बेरोजगारी, महंगाई और किल्लत ने जनआक्रोश को जन्म दिया। इसके बाद श्रीलंका में सत्ता पर बदलाव हुआ और नए राष्ट्रपति ने संभाली कमान।
पिछले साल यानी 2024 में बांग्लादेश में छात्र आंदोलन ने राजनीति की बागडोर बदल दी। शेख हसीना सरकार पर भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन और आरक्षण नीति पर असंतोष के चलते व्यापक विद्रोह हुआ। प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए और कई मंत्रियों के घरों पर आगजनी की गई। 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। इस आंदोलन के दबाव में शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का मुख्य सलाहकार बनाया गया। देश में अभी तक आम चुनाव नहीं हुए और अस्थिरता की स्थिति बनी हुई है।
पाकिस्तान में भी इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के बाद विरोध प्रदर्शन जारी हैं। इमरान समर्थकों की रैलियां, जनसभाएं और विरोध प्रदर्शन सरकार के लिए चुनौती बने हुए हैं। देश के उत्तर-पश्चिम और बलूचिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के हमले बढ़ गए हैं। बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) जैसे अलगाववादी गुट सरकार के लिए गंभीर खतरा हैं।
वहीं दूसरी ओर, मालदीव में नव निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने भारत विरोधी रुख अपनाया। उनकी चीन के साथ करीबी नीतियों ने भारत-मालदीव संबंधों में तनाव पैदा कर दिया।