इंदौर में प्रवर्तन निदेशालय ने आबकारी घोटाले को लेकर बड़ी कार्रवाई करते हुए कुछ समय पहले ईडी की टीमों ने शहर में 18 ठिकानों पर छापे मार कार्यवाई की थी । यह कार्रवाई आबकारी अधिकारियों और शराब व्यापारियों के यहां हुई। शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय को मिली थी।(ईडी) ने फर्जी बैंक चालानों के माध्यम से हुए 71 करोड़ रुपये के आबकारी घोटाले की जांच शुरू कर इस घोटाले के दो मुख्य आरोपी अंश त्रिवेदी और राजू दशवंत को ईडी ने गिरफ्तार किया है। कोर्ट ने दोनों को आठ अक्टूबर तक रिमांड पर ईडी को सौंप दिया है। घोटाला 2017 में उजागर हुआ था,जब पुलिस ने शराब ठेकेदार अंश त्रिवेदी और राजू दशवंत के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इस मामले में आबकारी अधिकारियों की संलिप्तता भी सामने आई थी। घोटाले की रकम 100 करोड़ रुपए तक पहुंच सकती थी । इस कार्रवाई में मध्य प्रदेश के किसी स्थानीय ईडी अधिकारी को शामिल नहीं किया गया है, बल्कि दिल्ली और लखनऊ से आई टीमों ने कार्रवाई को अंजाम दिया था।
बैंक चालानों में हुई थी हैरफेरी -
मनी लांड्रिंग के सबूत मिलने के बाद ईडी ने प्रकरण दर्ज कर जांच आरंभ कर ठेकेदार अंश त्रिवेदी ने शासन से तीन शराब दुकानों का संचालन करने के लिए ठेका लिया था। बाद में सामने आया कि दुकानों के संचालन और शराब खरीदने के लिए शासन के खजाने में जमा किए गए बैंक चालानों में हेरफेर हुआ। कम राशि जमा कर चालानों में शून्य या अंक जोड़कर लाखों रुपये की गड़बड़ी की गई। इस तरह ठेका अवधि में करीब 71 करोड़ रुपये का हेरफेर किया गया। पुलिस जांच में आरोपियों ने तत्कालीन सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे और सहायक जिला आबकारी अधिकारी सुखनंदन पाठक का नाम लिया था। त्रिवेदी ने कहा था कि घाटा होने पर वह दुकान सरेंडर करना चाहता था, लेकिन आबकारी अधिकारियों ने दशवंत को भेजा और कहा कि वही दुकान चलाएगा। दुकानों की कमाई में आबकारी अधिकारी भी हिस्सेदार थे। संभावना है कि कुछ और लोगों को भी इस मामले में आरोपी बनाया जा सकता है। आबकारी विभाग के वे अधिकारी, जो पुलिस जांच में बच गए थे, अब ईडी के निशाने पर आ सकते हैं।
2015 से 2018 के बीच हुए थे फर्जीवाड़े -
इंदौर जिला आबकारी विभाग में वर्ष 2015 से 2018 के बीच सरकारी गोदामों से शराब निकालने के लिए बनाए गए 194 बैंक चालानों में भारी गड़बड़ी पाई गई थी। छोटे-छोटे चालानों को बड़ा दिखाकर शराब उठाई गई और फिर सरकारी दुकानों के जरिये बेची गई। इस घोटाले को उजागर करने के बाद ईडी ने 2024 में जांच शुरू की थी।