जबलपुर। थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की मदद करने वाली संस्थाओं के लिए दिव्यांग दिलीप रजक प्रेरणा स्त्रोत बनकर सामने आए हैं। दोनों पैरों से दिव्यांग दिलीप (40) थैलेसीमिया बच्चों के लिए 18 बार रक्तदान कर चुके हैं। वे कहते हैं कि उनकी दिव्यांगता हौसलों को पस्त नहीं कर सकती है। उनके रक्त की हर बूंद थैलेसीमिया बच्चों के लिए समर्पित है। उनका जज्बा ऐसा है कि 2014 में एक ट्रेन एक्सीडेंट में दोनों पैर कट जाने के बाद भी वे रक्तदान करते आ रहे हैं।
दिलीप ने बताया वे जब 17 वर्ष के थे तब उन्हें एक थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे के परिजन रक्त के लिए गुहार लगाते हुए मिले थे। तब उन्होंने पहला रक्तदान उस बच्चे के लिए किया था। वहीं, दिलीप से जुड़े किशोर थारवानी ने बताया कि दिलीप सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। 25 साल में 103 बार रक्तदान कर चुके किशोर अब प्राथमिक रूप से थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के लिए ही रक्तदान करते हैं।
ग्वालियर। अगर कुछ बदलाव करना है तो उसकी शुरूआत आपको खुद करनी होगी। ऐसा ही कार्य एक डॉक्टर ने प्रसूताओं के लिए अस्थाई ब्लड बैंक खोलकर किया है। इससे उन महिलाओं को फ्री ब्लड मिलता है जिनके पास डोनर नहीं होते हैं। ब्लड बैंक की शुरुआत करने वाले स्वास्थ्य विभाग के डॉ. प्रबल प्रताप सिंह ने बताया कि इसमें हमेशा 100 यूनिट ब्लड रिजर्व रखा जाता है। 6 महीने के भीतर इस ब्लड बैंक से 88 प्रसूताओं को ब्लड उपलब्ध कराया जा चुका है। इस प्रकार की सेवा शुरू करने का ख्याल उनके मन में इसलिए आया क्योंकि ग्वालियर अंचल में ब्लड के दलाल काफी सक्रिय रहते हैं। वे मजबूर लोगों को आसानी से शिकार बना लेते हैं।
डॉ. प्रबल ने कहा कि किसी के एक प्रयास करने से इस प्रकार की सेवा नहीं चलती है। इसलिए वे लोगों को ब्लड डोनेशन के लिए प्रेरित करने के लिए डोनर तैयार करते हैं। इसके लिए वह विभिन्न कोचिंग क्लासेस में जाते हैं और युवा वर्ग को रक्तदान का महत्व समझाते हैं। इसके लिए वे आर्मी के जवानों के भी संपर्क में रहते हैं। इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग के कार्यक्रमों में भी लोगों को इस कार्य से जुड़ने के लिए प्रेरित करते रहते हैं।