कोलकाता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कोलकाता में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि संघ को केवल भाजपा के दृष्टिकोण से देखना सही नहीं है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि संघ सिर्फ एक सेवा संगठन भर नहीं है, बल्कि उसका स्वरूप और उद्देश्य कहीं अधिक व्यापक है।
भागवत ने आगे कहा कि संघ को सही मायनों में समझने के लिए उसे बाहर से देखने के बजाय उसके कामकाज और विचारधारा को करीब से समझना जरूरी है। भागवत ने कहा कि कई लोगों में यह प्रवृत्ति देखी जाती है कि वे संघ को भाजपा के चश्मे से देखने की कोशिश करते हैं, जो एक बड़ी भूल है। उनके अनुसार, संघ को केवल देखकर नहीं जाना जा सकता, बल्कि उसे अनुभव करना पड़ता है, तभी उसकी वास्तविक भूमिका और सोच को समझा जा सकता है।
बता दें मोहन भागवत का यह बयान ऐसे समय में सामने आया है, जब जर्मनी दौरे के दौरान राहुल गांधी ने उन्हें लेकर टिप्पणी की थी कि RSS प्रमुख खुले तौर पर यह कह रहे हैं कि सच से ज्यादा ताकत को महत्व दिया जा रहा है। इसी पृष्ठभूमि में भागवत के बयान को अहम माना जा रहा है।
दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर देश के कई बड़े शहरों जिनमें कोलकाता, दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में संवाद कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। कोलकाता में हुए कार्यक्रम के दौरान भागवत ने हिंदू समाज, राजनीति और संघ की भूमिका व उसके कार्यों पर विस्तार से अपने विचार रखे।
7 बड़ी बातें जो भागवत ने अपनी स्पीच में कहीं
संघ का मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना है, न कि किसी समुदाय या व्यक्ति के खिलाफ काम करना। इसका मकसद समाज को मजबूत बनाना है, न कि टकराव पैदा करना।
RSS की गतिविधियों को गलत तरीके से देखना सहीं नहीं है। जैसे कोई व्यक्ति व्यायाम करता है तो उसका अर्थ हमला करना नहीं होता, बल्कि स्वयं को स्वस्थ और सक्षम बनाना होता है।
संघ जैसा संगठन दुनिया में कहीं और नहीं है, इसलिए उसकी तुलना किसी अन्य संगठन से करना भ्रम पैदा कर सकता है।
RSS के स्वयंसेवक गणवेश में अनुशासित संचलन करते हैं, लेकिन इसे पैरामिलिट्री संगठन कहना तथ्यात्मक रूप से गलत है।
संघ का कोई शत्रु नहीं है, लेकिन संगठन के विस्तार से कुछ लोगों के संकीर्ण स्वार्थ जरूर प्रभावित होते हैं, जिससे उनके विरोध की प्रवृत्ति सामने आती है।
किसी भी व्यक्ति को RSS पर राय बनाने का अधिकार है, लेकिन यह राय सच्चाई और प्रत्यक्ष जानकारी पर आधारित होनी चाहिए, न कि अफवाहों, मनगढ़ंत कथाओं या दूसरे स्रोतों की अधूरी जानकारी पर।
संघ की स्थापना भारतीय समाज को सशक्त और जागरूक बनाने के उद्देश्य से की गई थी, ताकि भारत फिर से विश्व में मार्गदर्शक की भूमिका निभा सके। यह संगठन किसी राजनीतिक एजेंडे, आक्रोश या प्रतिस्पर्धा की भावना से नहीं बना था।