Naresh Bhagoria
17 Nov 2025
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16 Nov 2025
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16 Nov 2025
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अशोक गौतम, भोपाल। राजस्थान के कोटा की तर्ज पर भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और उज्जैन में लॉन्ड्री क्लस्टर बनाए जाएंगे। इसके लिए कपड़े धोने के पानी की पाइपलाइन के अलावा धुले हुए कपड़े के पानी को ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंचाने के लिए अलग से पाइपलाइन बिछाई जाएगी। इसके बाद इस शुद्ध पानी को नदियों में छोड़ा जाएगा। प्रदेश में अभी लॉन्ड्री की न तो कहीं कोई व्यवस्था है और न ही इसके लिए कोई स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोसीजर (एसओपी) सरकार ने जारी की है। निकाय अपने स्तर पर अनुमतियां देते हैं, लेकिन स्थान नहीं होने के कारण जगह तय नहीं होती है। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने कलेक्टरों को औद्योगिक एरिया की तर्ज पर इसके लिए भी शहरों में एक क्लस्टर बनाने के साथ एसओपी ड्राफ्ट तैयार करने के लिए कहा है। वहीं एक दल लॉन्ड्री क्लस्टर अध्ययन करने कोटा जाएगा। कुछ समय पर पहले रजक संघ का प्रदेश स्तरीय दल क्लस्टर बनाने के लिए सरकार से मिला था।
लॉन्ड्री का पानी जलाशयों को दूषित कर रहा है। इससे जहां जलीय जीवों को नुकसान पहुंच रहा है। वहीं इसके रसायन (नाइट्रोजन) जल जलकुंभी पैदा करने वाले नाली के पानी (फास्फेट) के पानी के साथ क्रिया कर कैंसर जनित रोग पैदा कर रहा है। साबुन-डिटरर्जेंट में तमाम तरह के रसायन होते हैं, जो तालाब और नदियों के पानी को प्रदूषित कर देते हैं और जलीय जीवन को प्रभावित करते हैं।
राजधानी भोपाल में छोटे तालाब के चारों तरफ, पातरा के नीचे धोबी घाट बने हुए हैं। इसके अलावा इंदौर में पलासिया और करबला मैदान पर कपड़े घुलते हैं। ये घाट कान्ह नदी के किनारे हैं। पिछले माह नदी-तालाबों की आई रिपोर्ट में बताया गया था कि भोपाल में बड़े तालाब को छोड़कर सभी तालाब प्रदूषित हैं। वहीं कान्ह नदी का पानी सीवेज जैसा बताया गया था। इसका एक बड़ा कारण यहां धोबी घाट होना भी है।
मैनिट के प्राध्यापक एके शर्मा ने बताया कि जलकुंभी में कई बैक्टीरियां होते हैं। इसके साथ ही इसमें नाइट्रोजन होता है। जब इस पानी में साबुन और कास्टिक सोडा मिलता है तो ट्राई हालोमीथेन फार्म बनाता है। इस पानी को घरों में सप्लाई करने से पहले बार-बार क्लोरिनेशन किया जाता है। यह सभी रसायन मिलकर कैंसर जनित रोगों को जन्म देता है। विदेशों में क्लोरीन के जगह पर पानी शुद्ध करने के लिए ओजोन डाला जाता है, जो सेहत के लिए नुकसान देय नहीं होता है। आईआईएसईआर के डायरेक्टर गोबर्धन दास के मुताबिक साबुन अथवा तमाम तरह के कास्टिका सोडा पानी को दूषित करते हैं। यह पानी में अन्य रसायनों के साथ मिलकर हाइड्रो कार्बन की चेन बनाता है। क्लोरीन के साथ मिलकर अन्य खतरनाक बीमारियां बनाता है। यह टॉक्सिक मटेरियरल बनाकर लीवर, किडनी और हार्ट तक पहुंच जाता है। इसके बाद ब्रेन को डैमेज करता है।
सुपर लॉन्ड्री कोटा के संचालक अनिल माहौर बताते हैं कि कोटा में लॉन्ड्री के लिए सरकार ने अलग से जगह दे रखी है और धोने के लिए साफ पानी की पाइप लाइन है। वहीं, दूसरी पाइप लाइन से कपड़े धोने का पानी ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंचाने की व्यवस्था है। सरकार लॉन्ड्री संचालन के लिए लाइसेंस देती है। इधर, मप्र रजक समाज के अध्यक्ष नरेश मालवीय कहते हैं कि धोबी कपड़े धोने के लिए सीधे नदी और तालाब का पानी लेते हैं। कपड़े धोने के बाद उसे बिना फिल्टर किए डाल देते हैं। इससे प्रदूषण होता है, जलीय जीवों को खतरा पैदा होता है। वहीं, धोबी घाटों में न तो लाइट की व्यवस्था है और न ही छांव की।
नगरीय विकास एवं आवास विभाग के आयुक्त संकेत भोंडवे कहते हैं कि रजक समुदाय के लिए शहरों में जगह और उन्हें सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए बड़े शहरों के कलेक्टरों को पत्र लिखा गया है। इन्हें जगह देने के साथ कारोबार के लिए लोन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाएगी।