Mithilesh Yadav
16 Nov 2025
जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा है कि संघ को केवल देखने से नहीं समझा जा सकता, उसे अनुभव करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि कई संगठनों ने संघ के समान शाखाएं चलाने का प्रयास किया, लेकिन पंद्रह दिन से ज्यादा किसी की शाखा नहीं चली। आज संघ का कार्य समाज में चर्चा और स्नेह का विषय है। शताब्दी वर्ष में संघ की बढ़ती स्वीकृति स्वयंसेवकों के समर्पण का प्रमाण है। वे रविवार को पाथेय कण संस्थान, नारद सभागार में '…और यह जीवन समर्पित' पुस्तक के विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे। यह पुस्तक राजस्थान के दिवंगत 24 संघ प्रचारकों के जीवन संघर्ष, त्याग, तपस्या और सामाजिक योगदान का संकलन है।
संघ कार्य के बारे में उन्होंने कहा संघ ऐसे ही समझ में नहीं आता है। इसे समझने के लिए प्रत्यक्ष अनुभूति की आवश्यकता होती है, जो संघ में प्रत्यक्ष आने के बाद ही प्राप्त हो सकती है। डॉ. भागवत ने कहा कि आज संघ का काम चर्चा और समाज के स्नेह का विषय बना हुआ है। संघ के स्वयंसेवकों और प्रचारकों ने क्या क्या किया है, इसके डंके बज रहे हैं। उन्होंने कहा कि सौ साल पहले कौन कल्पना कर सकता था कि ऐसे ही शाखा चलाकर राष्ट्र का कुछ होने वाला है? लोग तो कहते ही थे कि हवा में डंडे घुमा रहे हैं। ये क्या राष्ट्र की सुरक्षा करेंगे? लेकिन आज संघ शताब्दी वर्ष मना रहा है और समाज में संघ की स्वीकार्यता बढ़ी है।
डॉ. भागवत ने चेताया कि सुविधाएं बढ़ने के साथ अनेक नुकसान भी आते हैं, इसलिए स्वयंसेवकों को चाहिए कि वे उसी भाव में रहें जैसे संघ के शुरुआती कठिन दौर में थे। उन्होंने कहा कि देश और समाज का उत्थान वही स्वयंसेवक कर सकता है जो जीवन में तप, त्याग और अनुशासन को धारण करे। भागवत ने पुस्तक को सिर्फ गौरव की अनुभूति नहीं, बल्कि “कठिन राह पर चलने की शक्ति देने वाला प्रकाश स्तंभ बताया।